Category: अगला-कदम

संक्लेश

तीन मोड़े लेने वाले जीव का संक्लेश, उत्कृष्ट पहले मोड़े के समय तथा जघन्य योनि स्थल के करीब पहुँचने पर होता है। मुनि श्री प्रणम्यसागर

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मति/श्रुत ज्ञान

शब्द यदि अपरिचित है जैसे सुमेर (क्योंकि जिनवाणी से सुना है, देखा नहीं) तो अर्थ का ज्ञान; यदि परिचित है तो अर्थ से अर्थांतर का

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कषायों की शक्तियाँ

लोभ की शक्तियाँ – हिमराग, ओंगन, शरीर मल, हल्दी रंग (अपने आप उड़ जाता है), ऐसे ही हर कषाय की शक्तियाँ कही हैं। ये शक्तियाँ

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सत्य वचन

10 प्रकार – 1. जनपद 2. सम्मति 3. स्थापना 4. नाम 5. रूप – जो दिख रहा है 6. प्रतीत्य – लम्बा/बड़ा 7. व्यवहार –

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भूख

भूख लगने के…. बाह्य कारण → 1. आहार-दर्शन → भोजन करने पर भी इच्छा। 2. उपयोग → ध्यान में लाने/सोचने से। 3. कोठा खाली होने

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संज्ञा

आहार संज्ञा → 6ठे गुणस्थान तक लेकिन इस गुणस्थान में हर समय आहार की इच्छा नहीं। भय संज्ञा → 8वें गुणस्थान तक पर 7वें गुणस्थान

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असत्य/उभय – मन/वचन योग

असत्य/उभय-मन/वचन योग का मूलकारण → ज्ञान पर आवरण (दर्शन तथा चारित्र मोहनीय इसलिये नहीं कहा क्योंकि ये संयमी के भी पाये जाते हैं – जीवकांड

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तैजस/कार्मण शरीर

तैजस शरीर के उत्कृष्ट संचय 66 सागर (7वें नरक से निकलकर तिर्यंच फिर 7वें नरक), संक्लेश के सदभाव में। कार्मण शरीर के उत्कृष्ट संचय का

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कार्मण/नोकर्म द्रव्य

कार्मण द्रव्य बंधने के बाद एक आवली + एक समय तक स्थिर रहता है (इस काल में परिवर्तित नहीं कर सकते)। इसे कहते हैं →

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निवृत्ति-अपर्याप्तक

क्या अपर्याप्तक अवस्था में पर्याप्त-नामकर्म के उदय में निम्न पर्याप्तियें पूर्ण हो जाती हैं ? (एकेइंद्रिय-4, विकलेंद्रिय-5, संज्ञी-6) 1. मत – जब तक दूसरी(शरीर) पर्याप्ति

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मंगल आशीष

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