Category: अगला-कदम

कर्म का बँटवारा

कर्म प्रकृतियों का एक भाग सर्वघाति को मिलता है तथा अनंत बहुभाग देशघाति को मिलता है । (तभी क्षयोपशम सम्भव होगा…कमला बाई जी) कर्मकांड़ गाथा–

Read More »

सिद्धों में भोगादि

भोग → प्रति समय आत्मा में ज्ञान/ चैतन्य भाव। उपभोग → वही रस बार-बार समयों में भोगना। जैसे अनार रस पहले घूँट में भोग, बार-बार

Read More »

सिद्ध

सिद्ध में न मार्गणा ना ही गुणस्थान, उनके न संयम होता है ना ही असंयम, क्योंकि वे साधना से रहित हो गये हैं। मुनि श्री

Read More »

भव्यत्व

वैसे तो भव्यत्व अनादि-सांत है पर एक आचार्य ने सादि-सांत भी कहा है → सम्यग्दर्शन होने पर ही भव्यत्व माना है। आर्यिका श्री विज्ञानमति जी

Read More »

विस्रसोपचय

विस्रसोपचय वर्गणायें आत्मा से चिपकी नहीं होतीं बल्कि स्थित होती हैं। इसीलिये तत्त्वार्थ सूत्र में “स्थिता” शब्द का प्रयोग किया है। (विग्रह) गति (एक स्थान

Read More »

सत्यादि योग

सत्य तथा अनुभय, मन व वचन योग; शरीर व पर्याप्ति नाम कर्मोदय से। असत्य व उभय में भी शरीर व पर्याप्ति नाम कर्मोदय पर मुख्य

Read More »

मिश्र-वर्गणायें

आचार्य श्री के अनुसार ये भिन्न प्रकार की होती हैं क्योंकि सर्वार्थसिद्धि में सप्तविध वर्गणायें बतायी हैं, 7वीं मिश्र होने पर ही बनेंगी। मुनि श्री

Read More »

आहारक शरीर

आहारक शरीर की सीमा सामान्यत: मनुष्यलोक तक। आचार्य श्री विद्यासागर जी चूंकि ये समुद्घात है सो नन्दीश्वर द्वीप के जिनालयों की वंदना को भी जा

Read More »

विक्रिया / वैक्रियक शरीर

विक्रिया में वैक्रियक शरीर नहीं बनता क्योंकि विक्रिया करने वाला औदारिक शरीर है, इसलिए विक्रिया में वैक्रियक वर्गणायें ग्रहण नहीं करता, ना ही अपर्याप्तक अवस्था

Read More »

उपयोग

शुद्धोपयोग भी केवलज्ञान की अपेक्षा से अशुद्धोपयोग है । आचार्य श्री विद्यासागर जी

Read More »

मंगल आशीष

Archives

Archives
Recent Comments

January 16, 2024

May 2024
M T W T F S S
 12345
6789101112
13141516171819
20212223242526
2728293031