Category: अगला-कदम

शुद्ध-भाव

संसारी जीवों के, आगम में दो ही भाव हैं – शुभ व अशुभ, शुद्ध-भाव तो सिद्धों में होगा। अध्यात्म में शुद्ध-भाव आता है, जिसका अर्थ

Read More »

विपाकी

1. जीव विपाकी = जीव को फलानुभूति जैसे ज्ञानावरण/दर्शनावरण 2. पुद्गल विपाकी = शरीर को फलानुभूति जैसे नामकर्म आदि 3. क्षेत्र विपाकी = एक क्षेत्र

Read More »

असंख्यात गुणी निर्जरा

इसे गुण श्रेणी निर्जरा भी कहते हैं। गुण = निर्जरा गुणाकार रूप से। श्रेणी = पंक्ति में एक के बाद एक। पहले समय में जितना

Read More »

व्यवहार / निश्चय

दूध में घी होता है, इसको आचार्यों ने निश्चय कहा है। निश्चय ही घी की उपलब्धि है। निश्चय के लिये समीचीन व्यवहार अनिवार्य है। व्यवहार

Read More »

अनुजीवी / प्रतिजीवी

अनुजीवी – चेतना के गुण, प्रतिजीवी – शरीर के, जैसे आयु, एक शरीर के बाद अगला शरीर मिलेगा। (तो आयु शरीर के साथ रहेगी। शरीर

Read More »

सासादन में मिथ्यात्व

पहले गुणस्थान में मिथ्यात्व की व्युच्छत्ति  होने  पर भी  सासादन में मिथ्यात्व कैसे ? योगेन्द्र ज्ञान को अज्ञान बनाने में कषाय भी कारण है। मिथ्यात्व

Read More »

अगुरुलघु

1. सब जीवों में सामान्य गुण….जो उस द्रव्य के गुणों को बदलने नहीं देता, अपनी-अपनी पर्याय में ही परिणमन करता है। 2. नाम कर्म का

Read More »

धर्म-ध्यान

इसके 4 भेद और भी होते हैं (आज्ञा-विचयादि के अलावा) , पिंडस्थादि (पार्थिवी, आग्नेय, मारुती, वारुणी >>>तत्वरुपवती) मुनि श्री प्रणम्यसागर जी

Read More »

दर्शन मोहनीय से अदर्शन

दर्शन मोहनीय के 3 भेदों में सम्यग्दर्शन के साथ सम्यक्-प्रकृति में परिषह/दोष भी। (क्षयोपशम) सम्यग्दृष्टि के चल, मल, अगाढ़ दोष होते हैं। चारित्रवान को भी

Read More »

स्कंध / स्पर्धक

स्कंध – सभी प्रकार के परमाणु पिण्ड स्पर्धक – कर्म की अनुभाग शक्त्ति बताने के लिये। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी

Read More »

मंगल आशीष

Archives

Archives
Recent Comments

October 9, 2022

May 2024
M T W T F S S
 12345
6789101112
13141516171819
20212223242526
2728293031