Category: अगला-कदम
अपूर्व-करण में काम
अपूर्व-करण के कार्यों (बंधव्युच्छित्ति) को देखते हुए, इसके 7 भाग किये हैं। पहले, छठे व सातवें गुणस्थानों के कार्य बताये गये हैं। मेरे प्रश्न किये
अप्रमत्त
छठे गुणस्थान के क्षयोपशम-सम्यग्दृष्टि को सातिशय-अप्रमत्त में जाने के लिये तीनों करण तीन बार करने होते हैं: 1. अनंतानुबंधी की विसंयोजना के लिये। 2. सम्यक्-प्रकृति
अपूर्वकरण
अपूर्व करण में भी 4 कार्य…. 1. गुण-श्रेणी-निर्जरा = गुणित क्रम में, श्रेणी रूप (एक के बाद, एक कर्मों की लड़ियाँ), (असंख्यात गुणी) 2. गुण-संक्रमण
संयम और कषाय
संज्वलन के क्षयोपशम से सकल-संयम। संज्वलन का उदय तो निचले गुणस्थानों में भी पर 6 गुणस्थान तथा आगे सिर्फ संज्वलन का ही उदय। ऐसे ही
प्रमाद / कषाय
पहले से छठे गुणस्थान तक जब भी प्रमाद आयेगा कषाय के उदय से ही आयेगा। पर 7वें गुणस्थान में कषाय तो रहेगी पर प्रमाद नहीं।
द्रव्य/भावेंद्रिय
द्रव्य इंद्रियों की रचना आत्मा के प्रदेशों से। भावेंद्रिय लब्धि* और उपयोग** रूप में॥ क्षयोपशम से भावेंद्रिय → द्रवेंद्रिय → ज्ञान/ उपयोग। *(ज्ञानावरण कर्म का
पुरुषार्थ / काललब्धि
श्री मोक्षमार्ग प्रकाशक के अनुसार पुरुषार्थ से ही काललब्धि आती है। जैसे सम्यग्दर्शन तभी जब कर्मों की स्थिति अंत:कोड़ाकोड़ी सागर की रह जाती है तो
इंद्रियों की अपेक्षा संख्या
पर्याप्तक (जो दिखते/ दिख सकते हैं) → 3 इंद्रिय सबसे ज्यादा, इनसे कम 2 इंद्रिय, 4 इंद्रिय उनसे कम, सबसे कम 5 इंद्रिय। मुनि श्री
भाव/द्रव्य इन्द्रि
भाव-इन्द्रि… मति ज्ञानावरण के क्षयोपशम से, द्रव्य-इन्द्रि… शरीर नामकर्म/ जातिकर्म के उदय से। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
पुण्य/पाप प्रकृति
पाप प्रकृतियों की उत्कृष्ट स्थितियाँ पुण्य प्रकृतियों की उत्कृष्ट स्थितियों से ज्यादा होती हैं जैसे असाता की साता से ज्यादा। पुण्य प्रकृतियों में उत्कृष्ट अनुभाग
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