Category: अगला-कदम
प्रमाद / कषाय
पहले से छठे गुणस्थान तक जब भी प्रमाद आयेगा कषाय के उदय से ही आयेगा। पर 7वें गुणस्थान में कषाय तो रहेगी पर प्रमाद नहीं।
द्रव्य/भावेंद्रिय
द्रव्य इंद्रियों की रचना आत्मा के प्रदेशों से। भावेंद्रिय लब्धि* और उपयोग** रूप में॥ क्षयोपशम से भावेंद्रिय → द्रवेंद्रिय → ज्ञान/ उपयोग। *(ज्ञानावरण कर्म का
पुरुषार्थ / काललब्धि
श्री मोक्षमार्ग प्रकाशक के अनुसार पुरुषार्थ से ही काललब्धि आती है। जैसे सम्यग्दर्शन तभी जब कर्मों की स्थिति अंत:कोड़ाकोड़ी सागर की रह जाती है तो
इंद्रियों की अपेक्षा संख्या
पर्याप्तक (जो दिखते/ दिख सकते हैं) → 3 इंद्रिय सबसे ज्यादा, इनसे कम 2 इंद्रिय, 4 इंद्रिय उनसे कम, सबसे कम 5 इंद्रिय। मुनि श्री
भाव/द्रव्य इन्द्रि
भाव-इन्द्रि… मति ज्ञानावरण के क्षयोपशम से, द्रव्य-इन्द्रि… शरीर नामकर्म/ जातिकर्म के उदय से। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
पुण्य/पाप प्रकृति
पाप प्रकृतियों की उत्कृष्ट स्थितियाँ पुण्य प्रकृतियों की उत्कृष्ट स्थितियों से ज्यादा होती हैं जैसे असाता की साता से ज्यादा। पुण्य प्रकृतियों में उत्कृष्ट अनुभाग
तीर्थंकर प्रकृति बंध
तीर्थंकर प्रकृति बंध 8वें गुणस्थान के ऊपर इसलिये नहीं क्योंकि आगे कषाय/संक्लेष बहुत मंद हो जाते हैं। मुनि श्री सुधासागर जी
निद्यत्ति / निकाचित
अपूर्वकरण में निद्यत्ति/निकाचित पने की व्युच्छित्ति….सिद्धांत है। देवदर्शन से व्युच्छित्ति….भक्ति की अपेक्षा। मुनि श्री सुधासागर जी
संसार और संयम
“संसार” में – छोटे “स” से बड़ा “सा” बन जाता है यानि संसार बढ़ता ही जाता है। संयम यानि सं+यम – “स” से संयम/ सावधानी,
क्षायिक भाव/चारित्र
8-10 गुणस्थान में कषाय/ मोह का क्षय तो हुआ नहीं क्षायिक भाव/चारित्र कैसे कह दिया ? क्षपक-श्रेणी वाला क्षय करेगा ही/ उसी के लिये क्षपक
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