Category: अगला-कदम

अजीव + काया

अजीव कायवान 4 द्रव्य (धर्म, अधर्म, आकाश, पुद्गल) बताये। लेकिन पहले 3 को कायवान उपचार से कहा क्योंकि वे बहुप्रदेशी हैं। सही में काया तो

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निमित्त / उपादान

“एक द्रव्य दूसरे द्रव्य का कुछ नहीं कर सकता”, यह सर्वथा सत्य नहीं। दूसरे द्रव्यों के उपादान कर्ता नहीं हो सकते लेकिन निमित्त कर्ता तो

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चल/अचल प्रदेश

जीव तथा पुद्गल के प्रदेश स्थिर नहीं होते। जीव में 8 अचल प्रदेश होते हैं; हालाँकि स्पंदन तो होता है, Circulation नहीं। चल चल ही

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नरकों के बिल

पहले से सातवें नरकों में बिलों की संख्या तथा नारकियों की संख्या भी कम होती जाती है लेकिन दु:ख बढ़ते जाते हैं। मुनि श्री प्रणम्यसागर

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श्रमण / श्रावक

श्रमण तथा श्रावक की यदि विशुद्धि बराबर हो तो भी बेहतर कौन ? श्रमण। क्यों/ कैसे ? 1. चारित्र की अपेक्षा। 2. भविष्य में और

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स्कंध की गति

परमाणु ही नहीं, स्कंध भी एक समय में 14 राजू गति करता/ कर सकता है (विग्रह गति में कर्म रूप)। निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी

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जीव का स्वभाव

कहा है कि जीव का स्वभाव ऊर्ध्वगमन का होता है, पर हर स्थिति में संभव नहीं हो सकता है। इसलिये इसे सिर्फ़ स्वभाव की अपेक्षा

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वेदक-सम्यग्दर्शन

जो वेदन कराये सम्यग्दर्शन का उसे वेदक-सम्यग्दर्शन कहते हैं । यह आयतनों से जुड़े रहने से बना रहता है। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (शंका समाधान

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लौकांतिक देव

लौकांतिक देव को श्रुत केवली नहीं कह सकते हैं। ये पढ़ा नहीं सकते बस द्वादशांग के पाठी हैं। ज्ञान का क्षयोपशम होता है पर अंतिम

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मंगल आशीष

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