Category: अगला-कदम

चल/अचल प्रदेश

जीव तथा पुद्गल के प्रदेश स्थिर नहीं होते। जीव में 8 अचल प्रदेश होते हैं; हालाँकि स्पंदन तो होता है, Circulation नहीं। चल चल ही

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नरकों के बिल

पहले से सातवें नरकों में बिलों की संख्या तथा नारकियों की संख्या भी कम होती जाती है लेकिन दु:ख बढ़ते जाते हैं। मुनि श्री प्रणम्यसागर

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श्रमण / श्रावक

श्रमण तथा श्रावक की यदि विशुद्धि बराबर हो तो भी बेहतर कौन ? श्रमण। क्यों/ कैसे ? 1. चारित्र की अपेक्षा। 2. भविष्य में और

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स्कंध की गति

परमाणु ही नहीं, स्कंध भी एक समय में 14 राजू गति करता/ कर सकता है (विग्रह गति में कर्म रूप)। निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी

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जीव का स्वभाव

कहा है कि जीव का स्वभाव ऊर्ध्वगमन का होता है, पर हर स्थिति में संभव नहीं हो सकता है। इसलिये इसे सिर्फ़ स्वभाव की अपेक्षा

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वेदक-सम्यग्दर्शन

जो वेदन कराये सम्यग्दर्शन का उसे वेदक-सम्यग्दर्शन कहते हैं । यह आयतनों से जुड़े रहने से बना रहता है। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (शंका समाधान

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लौकांतिक देव

लौकांतिक देव को श्रुत केवली नहीं कह सकते हैं। ये पढ़ा नहीं सकते बस द्वादशांग के पाठी हैं। ज्ञान का क्षयोपशम होता है पर अंतिम

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अंधकार

9वें अरुणद्वीप से घना अंधकार (जिसे हज़ारों सूर्य भी नहीं छेद सकते हैं। वयलाकार Shape में ब्रम्हलोक के सबसे ऊपर के अरिष्ट विमान तक उठता

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विपाक

पुद्गल(कुर्सी आदि) का विपाक प्राय: समय पर ही, कर्म का कभी भी जैसे आयु/ अकाल मृत्यु। मुनि श्री अजितसागर जी

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शरीर के वर्ण

1. बादर तैजसकायिक… पीत (शिखा, मूल में) । 2. बादर जलकायिक …. शुक्ल (बिना रंग के जल दिखेगा कैसे ! धार/ समूह में साफ दिखता

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मंगल आशीष

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