Category: अगला-कदम

पदार्थ

मुख्य रूप से → जीव, अजीव। इनके दो-दो भेद → पुण्य व पाप प्रकार के। पुण्य जीव रूप → सम्यग्दृष्टि/ पुण्य में प्रवृत्ति करे। पाप

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आयुबंध

आयुबंध सातवें गुणस्थान में नहीं होता। लेकिन आयुबंध यदि निचले गुणस्थान में शुरू हो गया हो और इसी बीच सातवाँ गुणस्थान प्राप्त हो जाय, तो

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केवली के प्राण / इन्द्रियां / पर्याप्तियां

सयोग केवली के क्षयोपशम भाव का अभाव होने से भावेन्द्रियां नहीं होतीं। पर्याप्तियां द्रव्येन्द्रियों की अपेक्षा से जानें। प्राण 4( श्वासोच्छवास, आयु, वचन, काय), अयोग

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निमित्त नैमित्तिक संबंध

सूर्य के निमित्त से मैं गरम होता हूँ, पर गर्मी मेरी है। यह निमित्त नैमित्तिक संबंध से हुआ, हैं दोनों स्वतंत्र। निर्यापक मुनि श्री सुधासागर

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करण और भाव

तीन करण… मिथ्यादृष्टि के भी होते हैं जब वह सम्यग्दर्शन के सम्मुख खड़ा होता है। तब औदयिक भाव होते हैं। श्रेणी मांडते समय आदि छह

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ईर्यापथ आस्रव

एक समय की स्थिति का निवर्तक ईर्यापथ कर्मबंध अनुभाग सहित है ही। इसी कारण से ईर्यापथ कर्म स्थिति और अनुभाग की अपेक्षा अल्प है। एस.के.जैन

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शुक्ल ध्यान

1. पृथक्त्वविर्तक वीचार I. वीचार = परिवर्तन सहित II. पृथक-पृथक अर्थ/ पर्याय/ योग (मन या वचन या काय) पर शुक्ल ध्यान 2. एकत्व वितर्क अविचार

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षट भाग हानि लाभ

संख्यात भाग, असंख्यात, अनंत भाग हानि के बाद लाभ में अनंत भाग लाभ, असंख्यात, संख्यात भाग लाभ आयेगा। समझने के लिये एक कपड़े के संख्यात

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सचित्त-त्याग प्रतिमा

श्री रत्नकरण्ड श्रावकाचार में… सचित्त-त्याग प्रतिमा वाले को “दया की मूर्ति” कहा है। यानी सचित्त फल-सब्जियों को जीव सहित माना/ खाने पर हिंसा मानी। महापुराण

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समय

एक समय → निश्चय काल की अपेक्ष….. द्रव्य। व्यवहार काल की अपेक्षा… पर्याय। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (जिज्ञासा समाधान)

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मंगल आशीष

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