Category: अगला-कदम

नील लेश्या

नील लेश्या पूरा (जान से) तो नहीं मारती पर कुछ करने योग्य भी नहीं छोड़ती (जैसे हाथ पैर कट जाना) । मुनि श्री  विनिश्चयसागर जी

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रागद्वेष

रागद्वेष औदायिक भाव हैं । इनके लिये बाह्य निमित्त (मन भी हो सकता है) आवश्यक है । मुनि श्री समयसागर जी

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श्रुतज्ञान

केवलज्ञान के लिये द्रव्य-श्रुत की आवश्यकता नहीं, जैसे शिवभूति महाराज का श्रुतज्ञान । पर भाव-श्रुत पूरा होना चाहिये । मुनि श्री समयसागर जी

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कुभोग भूमि

कुभोग भूमि में कल्पवृक्ष नहीं होते, फलफूल बहुतायत में । मनुष्य/त्रिर्यंच युगलिया पैदा होते हैं । पं. रतनलाल बैनाड़ा जी

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बंध / कर्मक्षय

10 वें गुणस्थान में मोहनीय का क्षय हो रहा है पर बाकी ३ घातिया कर्मों का बंध भी हो रहा है । मुनि श्री सुधासागर

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कर्म / नोकर्म

“कर्म” परिवर्तित करता है, “नोकर्म” प्रभावित करता है, “संकल्प” इनके Effect को Neutralize करता है ।

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नोकर्म वर्गणायें

द्रव्य, काल, क्षेत्र, भव, भावों के अनुसार नोकर्म वर्गणायें मिलती हैं जैसे अफ़्रीका में काले रंग की नोकर्म वर्गणायें । मुनि श्री प्रमाणसागर जी

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प्रमत्त / अप्रमत्त

आहारादि प्रवृत्ति प्रमत्त अवस्था, प्रवृति में सावधानी अप्रमत्त अवस्था । मुनि श्री प्रमाणसागर जी

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प्रतिमा और गुणस्थान

5वाँ गुणस्थान पहली या दूसरी प्रतिमा वालों के ? मुनि श्री उत्तमसागर जी 12 शीलव्रतधारी के ही संयम माना जायेगा । पहली प्रतिमा में पाप

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मंगल आशीष

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