Category: अगला-कदम
स्कंध / स्पर्धक
स्कंध – सभी प्रकार के परमाणु पिण्ड स्पर्धक – कर्म की अनुभाग शक्त्ति बताने के लिये। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
आयुकर्म
आयुकर्म का सम्बंध काल से नहीं बल्कि कर्म के निषेकों से होता है। उदीरणा में निषेक ज्यादा खिरते हैं। 7वें गुणस्थान में मुनिराज की आयुकर्म
तीर्थंकर प्रकृति बंध
तीर्थंकर प्रकृति बंध का प्रारम्भ – 4-7 गुणस्थानों में, बाद में 8वें गुणस्थान की प्रारम्भ अवस्था तक होता रहता है। यह प्रथमोपशम, द्वितीयोपशम, क्षयोपशम या
पुद्गल / प्रदेश
एक परमाणु एक प्रदेश में रहेगा। दो परमाणु एक प्रदेश में भी रह सकते हैं यदि बद्ध हों/अवगाहित होकर। दो प्रदेशों में तीन परमाणु भी
चल/अचल प्रदेश
अयोग केवली तथा सिद्ध भगवान के “अचल प्रदेश” होते हैं, हमारे “चल”(इस कारण शायद हमको सब घूमता दिखता है)। चल प्रदेशों में Activity होती है।
अधर्म-द्रव्य
आचार्य अकलंकदेव – अधर्म-द्रव्य, लोक के आकार तथा स्थिति को बनाये रखने में निमित्त है। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
मूर्तिक / अमूर्तिक
संसारी, पुद्गलों पर आधारित जैसे शरीर, श्वासोच्छवास, इसलिये मूर्तिक; “पर” से बाधित, सो व्यवहार। सिद्ध भगवान में यह सब नहीं, सो निश्चय। मुनि श्री प्रणम्यसागर
षटगुणी हानि/ वृद्धि
समझ में आना कठिन है। जिनवाणी/आगम पर विश्वास करके बस इतना समझें – लगातार…अनंत/असंख्यात/संख्यात हानि/वृद्धि, व्यय/उत्पाद। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
शब्द / अर्थ / भाव
भाव प्रत्यय की ओर यात्रा तब होती है जब हमारा अर्थ प्रत्यय मज़बूत होता है। और अर्थ प्रत्यय यदि मज़बूत है तो निश्चित है कि
सोलहकारण भावना
सोलहकारण भावना की हर भावना अपने आप में परिपूर्ण है। विनय-संपन्नता भी स्वतंत्र कारण है (तीर्थंकर बंध प्रकृति के लिये)। श्री धवला जी – मुनि
Recent Comments