Category: अगला-कदम
मिथ्यात्व
दो प्रकार का मिथ्यात्व- 1) नैसर्गिक – स्वभाविक रूप से,कर्मोदय से, अगृहीत। 1 से 5 इन्द्रिय जीवों में। 2) अधिगम – उपदेश से, संज्ञी जीवों
अदर्शन-परिषह
दर्शन-मोहनी के उदय से, अदर्शन-परिषह होता है, मिथ्यात्व से नहीं। शास्त्रों में – पढ़े के अनिर्णय से क्योंकि अनुभव/बुद्धि से परे है – आत्मा पकड़
सम्यग्दर्शन
सम्यग्दर्शन जब भी प्रकट होगा तब प्रशम आदि चारों गुणों से होगा, आत्मचिंतन से नहीं, 7 तत्त्वों पर विश्वास से होगा। वीतराग-सम्यग्दर्शन आत्मा को आधार
अगारी
उत्कृष्ट प्रतिमा वालों (श्रावक – जघन्य-1 से 6 प्रतिमा, मध्यम-7 से 9, उत्कृष्ट-10-11 प्रतिमा वाले) को भी अगारी कहा, क्योंकि घर व परिग्रह का पूर्ण
विषय-भोग
केवल श्रद्धान से विषयों के प्रति झुकाव रुकता नहीं। सौधर्म इन्द्र क्षायिक सम्यग्दृष्टि होते हुये, जौंक की तरह विषयों को छोड़ता नहीं है। आचार्य श्री
हिंसा
प्रवृत्ति तो 1 से 6 गुणस्थानों में है, तो हिंसा ? पहले गुणस्थान वाला भी जब प्रवृत्ति में सावधानी बरतेगा, तब हिंसा का दोष नहीं
अज्ञान / अनंतानुबंधी
अज्ञान सिर्फ मिथ्यात्व से ही नहीं, अनंतानुबंधी से भी होता है जैसे दूसरे गुणस्थान का अज्ञान जहाँ मिथ्यात्व का अनुदय है। अप्रत्याख्यान तथा प्रत्याख्यान सर्वघाती
पुदगल-परावर्तन
नोकर्म-बंध के हेतु – शरीर/प्रियजन। कर्म-बंध तो भीतर चल रहा है। नोकर्म-बंध टूटे तो कर्म-बंध टूटे, कर्म-बंध टूटे तो नोकर्म-बंध छूटे। इस तरह पुदगल-परावर्तन दो
कर्मों का प्रभाव
निमित्तों और नोकर्मों से बचने पर, कर्मों का प्रभाव कम हो जाता है। आचार्य श्री विद्यासागर जी
सामायिक
रोजाना दिन में 3-3 बार एक सी बातों को दोहराना, क्योंकि राग ज्यादा है । पर पर्याय को विषय न बनायें क्योंकि पर्याय तो अस्थिर
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