Category: अगला-कदम
ध्यान
ध्यान के लिये – 1. शुभ Object का ज्ञान 2. आत्मा पर श्रद्धान 3. प्रत्याहार – अन्य विषयों पर से ध्यान हटाना 4. धारणा –
पाप
प्रवचनसार-गाथा-233 में >> हिंसा से प्रमाद व कर्मबंध कहा और गाथा 234 में परिग्रह होने मात्र से हिंसा और कर्मबंध कहा है, बाकी 3 पापों
पुदगल / आत्मा / परमात्मा
तीनों को प्रत्यक्ष उदाहरण से समझाइए ? प्रश्नकर्ता की पिटाई चालू कर दी । वह चिल्लाने लगा – प्रभु! बचाओ-बचाओ । जो पिट रहा था
एक द्रव्य का दूसरे द्रव्य पर प्रभाव
एक द्रव्य का दूसरे द्रव्य पर प्रभाव व्यवहार से होता है, निश्चय (शुद्ध आत्मादि) से नहीं । वह प्रभाव अजीव (घंटों) तक पर होता है
गारव
गर्व का सूक्ष्म भाव; अंतरंग – जैसे “सात गारव”…. सर्व सुख/ साता/ चैन की वंशी/ औरों से बहुत बेहतर हूँ । मुनि श्री प्रण्म्यसागर जी
भगवान का शरीर
1. अंतराय समाप्त सो अनंतवीर्य, इसलिये नामकर्म वर्गणायें लेने में लाभांतराय नहीं । 2. शरीर परमौदारिक (शुक्लध्यान से 12 गुणस्थान में शरीर शुद्ध) सो… कवलाहार
उपयोग
1. अशुभोपयोग में यदि आयुबंध हुआ तो कुमानुष, देव भी बने तो भवनत्रिक । पापबंध तो होगा ही । 2. शुभोपयोग में सब शुभ करने
21.1.21
इक्कीस = इक ईस पहला ईस = अरिहंत दूसरा ईश = सिद्ध दोनों के बीच “1”, मैं अकेला, ईश्वरीय गुणों/ शक्तियों से रक्षित । चिंतन
एकेंद्रिय के कषाय
1. एकेंद्रिय जीवों के मिथ्यात्व होने से अनंतानुबंधी (+ तीनों) कषायें होती हैं । 2. निगोदियाओं के इस कषाय के कारण ही बार बार निगोदिया
कर्म
क्षय तो सिर्फ 7 कर्मों का किया जाता है । 8वें आयु कर्म का तो संरक्षण किया जाता है । आचार्य श्री विद्यासागर जी
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