Category: अगला-कदम
उपशम सम्यग्दर्शन में अनंतानुबंधी
उपशम सम्यग्दर्शन में अनंतानुबंधी सत्ता में रहती है, सिर्फ उदय के समय स्तबुक संक्रमण होकर अप्रत्याख्यान आदि में बदल जाती है । मुनि श्री संभवसागर
मिथ्यात्व
मिथ्यात्व के बंध व उदय की व्युच्छित्ति तो पहले गुणस्थान में ही हो जाती है । पर सत्ता में सातवें गुणस्थान तक क्षपक श्रेणी की
दर्शन/ज्ञान
आत्मा जानने का प्रयास करती है उसे दर्शन कहते हैं । वह कौन सा दर्शन है यह तय होता है कि ज्ञान कौन सी इंद्रिय
सम्यग्दर्शन
सम्यग्दर्शन को पाने के लिये जो प्रयास किया जाता है उसे चारित्र कहेंगे या सम्यग्दर्शन स्वत: प्रकट होता है ? बिना कारण के कोई कार्य
नरकों में बिल
पहले नरक में 30 लाख से घटते हुये सातवें नरक में 5 बिल रह जाते हैं । कुल 84 लाख बिल होते हैं । श्री
गोत्र
चक्रवर्ती के साथ म्लेच्छ-खंड़ से आये पुरूषों के गोत्र, नीच से उच्च में परिवर्तित हो जाते हैं ( उनके उच्च गोत्र वालों से संबध होने
सिद्ध भगवान में परिणमन
सिद्ध भगवान में परिणमन द्रव्य (जीव) की अपेक्षा अगुरुलघु गुण से होता है, पर हम उसे समझ नहीं सकते । ज्ञान में, शीशे की तरह
धर्म/अधर्म द्रव्य
धर्म/अधर्म द्रव्य लोकाकाश के आगे क्यों नहीं फैले ? उनका आकार इतना ही है । पं. रतनलाल बैनाड़ा जी
ध्यान
ध्यान चारित्र गुण की निर्मल पर्याय है, जितने अंशों में चारित्र की निर्मलता है उतने अंशों में ध्यान है । इसे रत्नमयी कहा है ।
साता/असाता
साता/असाता में से, हर समय किसी एक का उदय रहता है । इसमें हर्ष विषाद करने से और और बढ़ती है, समाप्त करने का तरीका
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