Category: अगला-कदम
उपादान
उपादान के अनुसार ही कार्य हो, ऐसा नियम नहीं है, वरना अच्छी दाल से टर्रा दाल कैसे पैदा हो जाती है । यह कारण-कार्य व्यवस्था
उपयोग
शुद्धोपयोग भी केवलज्ञान की अपेक्षा से अशुद्धोपयोग है । आचार्य श्री विद्यासागर जी
ध्यान
ध्यान तो अशुद्ध दशा में ही होता है, ध्येय की प्राप्ति शुद्ध अवस्था में होती है । आचार्य श्री विद्यासागर जी
अवगाहना
बिना मोड़े वाले जीव की अवगाहना मोड़े वाले जीव की अपेक्षा कम होती है । पं. रतनलाल बैनाड़ा जी
गति नाम कर्म
1. जिसके उदय से आत्मा भवों में जाती है । 2. जिसके उदय से पर्याय रूप अनुभूति हो । पं. रतनलाल बैनाड़ा जी
द्रव्य लेश्या
विग्रहगति में सब जीवों के शुक्ल द्रव्य लेश्या ही होती है, क्योंकि कार्मण वर्गणाओं का रंग शुक्ल होता है । मिश्र अवस्था में कापोत, नारकियों
पर्याय
पर्याय का ज्ञान होना बाधक नहीं है, पर्याय में मूढ़ता आ जाना बाधक है । आचार्य श्री विद्यासागर जी
सम्यग्मिथ्यात्व
सम्यग्मिथ्यात्व में सम्यक्त्व का अंश होता है । इसालिये यह क्षयोपशमिक भाव है । पं रतनचन्द्रजी मुख्तार – व्य. कृ – 112
केवली का ज्ञान
केवली निश्चय नय से आत्मा को जानते हैं, व्यवहार नय से सब जानते हैं । व्यवहार नय ‘पर’ के आश्रित तथा निश्चय नय ‘स्व’ के
मिश्र गुणस्थान
मिश्र गुणस्थान वाला जब सम्यक्त्त्व प्राप्त करता है तो क्षयोपशम ही प्राप्त करता है, उपशम नहीं । पं रतनचन्द्रजी मुख्तार – व्य. कृ -114
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