Category: चिंतन

बच्चों की परवरिश

बच्चों को राजकुमार मानो/राजकुमारों की तरह परवरिश करो, चलेगा । पर राजा मत मान लेना वरना वे ख़ुद तो सैनिक ही बन पायेंगे और माता-पिता

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सुधारना

यदि कोई नहीं सुधरता, छोड़ दें । पर किसी को बिगाड़ने (आदतें खराब करके) में निमित्त तो ना बनें । चिंतन

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धर्म में संतोष

धर्म-यात्रा में संतोष नहीं करना, वरना प्रगति रुक जायेगी । पर असंतोष भी नहीं, वरना निरूत्साहित हो जाओगे/दु:खी होओगे, जिससे कर्मबंध होगा । जैसी स्थिति

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कर्मोदय

कर्मोदय… बिल से निकला हुआ सांप है; छेड़ा, तो डसा ! शरीर पर से निकल रहा हो, तो भी शांति से निकलने देना, वरना लेने

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बीरबल की खिचड़ी

हमारी खिचड़ी* इसलिये नहीं पक पा रही है क्योंकि धर्म/गुरुओं का ताप दूर से/यदाकदा दे रहे हैं । चिंतन * आत्मोन्नति/ धर्म की

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दोष

दोष दूसरे बतायें तो Sorry से काम चल जायेगा; ख़ुद महसूस करें तो प्रायश्चित लें । चिंतन

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छवि

उस छवि की ही चिंता की जाती है, जिसकी छाया पड़ती है, जैसे मकान, कार, शरीर आदि । आत्मा की छाया पड़़ती नहीं , सो

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यात्रा

संसार तथा परमार्थ की यात्रायें, सूक्ष्म से शुरु होकर अंत भी सूक्ष्म पर ही समाप्त होती हैं । जन्म/मृत्यु (एक cell से राख), सूक्ष्म निगोदिया

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ज्ञान / विज्ञान

ज्ञान पढ़ा/बोला जाता है, Theory है; विज्ञान ज्ञान के साथ साथ किया/देखा जाता है, Practical भी है । चिंतन

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मंगल आशीष

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