Category: डायरी

भोजन

गृहस्थ को भी भोजन माँग कर नहीं खाना चाहिये, ना ही परोसी हुई के अलावा माँगना चाहिये । अन्य कारणों के अलावा यह स्वाभिमान का

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आत्मा

आत्मा में स्पर्श/स्वाद/गंध/वर्ण नहीं होता, पर आत्मा ही स्पर्श/स्वाद/गंध/वर्ण को महसूस करती है । चिंतन

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नज़र लगना

यह तंत्र-विद्या का विषय है, जैसे कोई मज़ाक में कह दे – “डाकू आ गये”, तो पसीना आने लगता है । आधार नहीं है, पर

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अनेकांत

अनेकांत अनेक दृष्टिकोंण नहीं, अनिर्णयात्मक भी नहीं, बल्कि समग्र (पूर्ण) दृष्टि ।

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शरीर

शरीर स्वर्णयुक्त पाषाण है, मूल्यवान है । तपा लिया तो शुद्ध स्वर्ण निखर आता है, बहुमूल्य की प्राप्ति हो जाती है । निमित्त ना मिलने/पुरुषार्थ

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भगवान और भाग्य

भगवान और भाग्य का हमारे जीवन में Role कब आता है ? जब हमारा Role समाप्त हो जाता है, तब उनका Role शुरू होता है

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सुधारने की सीमा

सुधारने का प्रयास इसलिये करते हैं ताकि हँसने का वातावरण बने । यदि इस प्रयास में हमको रोना आ जाये तो सुधारना बंद कर दो

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मंगल आशीष

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