Category: वचनामृत – अन्य
अवांछनीय
ज़हर को जानो, धारण मत करो ! ऐसे ही अन्य अवांछनीय चीज़ों के लिये समझें। (ज़हर से तो एक झटके में मृत्यु होती है। अवांछनीय
अर्थ / परमार्थ
संसार कहता है धन कमाओ, परमार्थ कहता है जीवन को धन्य करो; दोनों में सामंजस्य कैसे बैठायें ? बाएं हाथ से धन कमाओ, दाएं हाथ
कर्म सिद्धांत
गणेश विसर्जन के समय नाव पलट गयी। भक्तों ने गणेश जी से बचाने के लिये प्रार्थना की। गणेश जी प्रकट तो हुए पर नृत्य करने
ध्यान
ध्यान दो रूप – 1. चिंतन रूप → गृहस्थों के लिये, गुणवानों के गुणों का। 2. एकाग्रता रूप → साधुओं के लिये। निर्यापक मुनि श्री
चिंतन / ध्यान
चिंतन ध्यान से पहले की प्रक्रिया। चिंतन में वस्तु के इर्द गिर्द घूमते हैं, ध्यान में वस्तु के केंद्र पर केन्द्रित; दोनों एक साथ चलते
व्यवसाय / धर्म
व्यवसाय (Profession) –> जीवन चलाने को (परम्परा निभाने)* धर्म –> जीव को चलाने। *जे कम्मे सूरा, ते धम्मे सूरा। मुनि श्री प्रमाणसागर जी
भेद-विज्ञान
संसार व परमार्थ में प्रगति के लिये हर क्षेत्र में भेद-विज्ञान ज़रूरी है.. 1.हर कार्य के लिये कालों का निश्चय करना। 2.क्षेत्रों में भेद…कहाँ क्या
नदियों में विसर्जन
हिंदु मान्यतानुसार राजा सगर के पुत्रों की भस्म से उन्हें जीवित करने के लिये भागीरथ ने गंगा को पृथ्वी पर उतारा। उनके पीछे मुड़कर देखने
दायित्व / कर्तव्य
दायित्व सौंपा जाता है, कर्तव्य निभाया जाता है, जैसे माता पिता बच्चों के प्रति। दायित्व को निभाना कर्तव्य होता है। मुनि श्री प्रमाणसागर जी
मन, दिल, दिमाग
मन –> संस्कारानुसार काम करता है, दिल –> रागादि से, दिमाग –> बाहरी Information से। मुनि श्री प्रणम्य सागर जी
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