Category: वचनामृत – अन्य

स्वाध्याय

कथायें आदि जानने से कल्याण नहीं होगा। जो नहीं जानते और उसे जानने का पुरुषार्थ करते हैं, उससे भला होगा। वे भव्य-सिद्ध हैं। जैसे शुरु

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धरती

धरती, धैर्य शब्द से बना है, धैर्य का सबसे बड़ा प्रतीक। धरती तो माँ का रूप है जो अपने बच्चों की गंदगी को साफ करती

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बुद्धि / मन

नियम/ व्रत/ त्याग बुद्धि (Wisdom) से लिए जाते हैं। मन तो रोकता है, व्रत आदि लेने के बाद भी मन सिर उठाता रहता है। हाँलाकि

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जबरन धर्म

बच्चे को मंदिर भेजने के लिये शर्त रखी → भगवान के दर्शन करके आओगे तभी भोजन मिलेगा। वह बाहर गया और झूठ बोल दिया कि

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खेती

“मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती…” यानी खेती वह जिसमें हीरे मोती पैदा होते हों। मछली आदि की खेती कैसे हो गयी

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सत्य

“साँच को आँच नहीं” कहावत कथंचित सीता जी की अग्नि परीक्षा से प्रेरित है, जब उनको अग्निकुण्ड में आँच तक नहीं आयी थी। निर्यापक मुनि

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सच्चाई

अच्छाई के माध्यम से ही सच्चाई का दर्शन होता है। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी

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कर्म / धर्म

कर्म, धर्म की ओर ले जाता है, धर्म, कर्म को अनुशासित करता है। निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी

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समता / ममता

समता और ममता सौतन है। एक को ज्यादा महत्त्व दिया तो दूसरी रुठ जाती है। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी

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दया / करुणा

दया…….दु:ख न हो जाय/ दु:ख न देना। करुणा… दु:ख में से निकालना। निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी

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मंगल आशीष

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