Category: वचनामृत – अन्य

भाग्य / पुरुषार्थ

काँटा लग‌ना पूर्व के कर्मों से (तथा वर्तमान की लापरवाही से)। लेकिन रोना/ न रोना पुरुषार्थ का विषय। निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी

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साधना

गृहस्थ जीवन जीते हुए साधना कैसे करें ? तुलाराम व्यापारी सामान तौलते समय दृष्टि तराजू पर रखता था। जब तराजू समानांतर हो जाती थी तब

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निद्रा

निद्रा आने पर ग्लानि का भी भाव रहता है। जैसे निद्रा आने पर मनपसंद भोजन, प्रिय बच्चों में भी रुचि नहीं रहती। मुनि श्री प्रणम्यसागर

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भाग्य

भाग्य के प्रकार –> 1. सौभाग्य – श्रावक (अच्छे परिवार में जन्मा)। 2. अहोभाग्य – श्रमण (मुनि/ साधु), जिन्होंने सौभाग्य को Encash कर लिया। 3.

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GOD

“G” से Generator, “O” से Operator, “D” से Destroyer, अपने लिये मैं खुद तीनों हूँ। मुनि श्री मंगलसागर जी

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जीना

प्रायः सुनते हैं –> “बच्चों के लिये जी रहे हैं।“ यानी पराश्रित/ चिंतित –> रोगों को निमंत्रण। सही –> अपने लिये जी रहे हैं –>

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शास्त्र

Antique चीज़ें बहुमूल्य होती हैं। हमारे शास्त्र तो हजारों वर्ष पुराने हैं। इनका मूल्य तो आँका ही नहीं जा सकता। आर्यिका श्री पूर्णमति माता जी

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मनोरंजन

मनोरंजन में दोष नहीं। मनोबंधन दोषपूर्ण है। मन बंधना नहीं चाहिये। आदत/ लत न पड़ जाये। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी

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नियंत्रण

बाह्य नियंत्रण (काय, वचन) होने पर ही अंतरंग (मन) नियंत्रित हो सकता है। यदि माता-पिता घूमने के शौकीन हों तो बच्चा घर में कैसे रह

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अनेकांत

पाँचों इंद्रियों के विषय अलग-अलग हैं। आपस में कोई संबंध नहीं। आत्मा सबको बराबर महत्त्व देती है। इन्हीं से वह संसार के सारे ज्ञान प्राप्त

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मंगल आशीष

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