Category: वचनामृत – अन्य
महावीर भगवान
महावीर भगवान के निर्वाण दिवस की बधाई। ……………………. इंद्रिय नियंत्रण… राजसिक/ तामसिक भोजन से अपना व सामने वालों का भी नुकसान होता है। स्वयं का
अभिमान / मान / स्वाभिमान
मान चोट पहुँचाता है, मानी को चोट पहुँचती है। स्वाभिमान न चोट पहुँचाता है न उसे चोट पहुँचती है क्योंकि वह पद का सम्मान करता/चाहता
वीतरागता / संवेदनहीनता
क्या वीतरागता संवेदनहीनता नहीं है ? संवेदना बाह्य है। गृहस्थ भी बाह्य में रहते हैं, उन्हें संवेदनशील होना चाहिये। साधु अंतरंगी, उन्हें वीतरागी। मुनि श्री
आत्मा
आत्मा को समझाने की आवश्यकता नहीं, वह तो ही खुद समझदार है, आत्मा को समझना है। ऐसे ही भगवान/ गुरु को समझना है। निर्यापक मुनि
सुखी रहने के उपाय
सुखी रहने के उपाय –> दुखों को स्वीकारें; सुखों का प्रतिकार करें। मुनि श्री प्रमाणसागर जी
मोह
जिससे मोह किया, वह आपको छोड़ेगा। मोह छोड़ा, तो आप उन्हें छोड़ेंगे। मुनि श्री मंगलसागर जी
संसार
साधु और गृहस्थ दोनों संसार में, पर संसार में साधु तथा गृहस्थ में संसार। गृहस्थ संसार का स्वाद जानता (उसमें आनंद लेता) है, साधु संसार
संस्कार / स्वाभिमान
सबका सम्मान करना संस्कार है, अपने अधिकारों की रक्षा स्वाभिमान। मुनि श्री प्रमाणसागर जी
दुश्मन
दुश्मन को कभी कमज़ोर मत समझना। सामने आ जाये तो अपने को कमज़ोर मत समझना। निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
Recent Comments