Category: वचनामृत – अन्य
अवतारवाद
अवतारवाद → ऊपर से नीचे तथा नीचे से ऊपर। उत्तीर्णवाद → नीचे से ऊपर ही (मनुष्य से भगवान, बनने की प्रक्रिया जैसा जैन-दर्शन में) निर्यापक
मंदिरों में सोना चांदी
मंदिरों में सोना चांदी के उपकरण Avoid करना चाहिये। इनसे चोरी की संभावना से ज्यादा महत्वपूर्ण है, भगवान की मूर्ति की अविनय। निर्यापक मुनि श्री
क्या सम्मान पैसे का ?
देखने में आता है कि पैसे वालों का ही सम्मान होता है, क्या उससे गरीबों का अपमान नहीं होता ? सम्मान पैसे वालों का नहीं
वर्तमान में जीना
भूत में जीओगे तो अटक जाओगे। भविष्य में भटक जाओगे। वर्तमान में नित नया वर्तमान आयेगा। बोर नहीं होगे, नित नया उत्साह आयेगा। निर्यापक मुनि
रति / राग / मोह
रति → झुकाव, राग→ लगाव, मोह → जुड़ाव। मुनि श्री प्रमाणसागर जी
मान
स्वाभिमान… स्व-अपेक्षित, अभिमान…. पर-अपेक्षित। मुनि श्री सुधासागर जी (निरभिमान… न स्व-अपेक्षित, ना पर अपेक्षित)
भीरुता और धर्म
धर्म-भीरू कहना सही नहीं है, धर्म से डरा नहीं जाता। संसार-भीरू धर्म करते हैं, यह सही है। मुनि श्री सुधासागर जी
दान / अहिंसा
एक चींटी बचाने का पुण्य सोने के पहाड़ को दान देने से भी ज्यादा होता है। आर्यिका श्री विज्ञानमती माता जी
दया
“दया”का उल्टा “याद” किसकी याद ? स्वयं की। आचार्य श्री विद्यासागर जी दया शुरु करनी चाहिये स्वयं/ अपने घर से। मुनि श्री अजितसागर जी
कारण
घर साफ़ रखने के लिये पहले गंदगी लाने वाली खिड़कियाँ बंद, तब झाड़ू। बाधक कारणों को पहले रोकें फिर साध्य पर ध्यान। निर्यापक मुनि श्री
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