Category: वचनामृत – अन्य

आलस्य

आलस्य (प्रमाद) भीति तथा प्रीति से ही कम होता है। भीति – आलसी को बोल दो साँप आ गया, तब आलस्य रहेगा ! प्रीति –

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ऊँचाई

ऊँचाई पाने के लिये गहराई में जाना जरूरी है, तो गहराई कैसे पायें ? बीज अपने आपको मिटा कर ही गहराई (जड़) तथा ऊँचाई प्राप्त

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सुधार

अशुभ निमित्तों से भावनाओं को खराब होने मत दो। ऐसे Object को देखते ही सुधार प्रक्रिया शुरु कर दो। जैसे युवा वेश्या का शव दिख

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लोभ

लोभ को पाप का बाप क्यों कहा ? क्योंकि लोभ के लिये अपमान को पी जाते हैं, लोभ से ही मायाचारी आती है, लोभ असफल

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मन

मन कोमल होता है सो आकार ले लेता गर्म लोहे जैसा, झुक जाता है तूफानों में, घुल जाता अपनों में/ अपने में। मुनि श्री प्रणम्यसागर

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भिखारी

भिखारी वह जो इच्छा रखता हो/ जिसकी इच्छा पूरी न हुई हो। आदर्श भिखारी…. शांति की इच्छा रखने वाला, शांति मिल जाने पर इस इच्छा

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अवतारवाद

अवतारवाद → ऊपर से नीचे तथा नीचे से ऊपर। उत्तीर्णवाद → नीचे से ऊपर ही (मनुष्य से भगवान, बनने की प्रक्रिया जैसा जैन-दर्शन में) निर्यापक

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मंदिरों में सोना चांदी

मंदिरों में सोना चांदी के उपकरण Avoid करना चाहिये। इनसे चोरी की संभावना से ज्यादा महत्वपूर्ण है,  भगवान की मूर्ति की अविनय। निर्यापक मुनि श्री

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क्या सम्मान पैसे का ?

देखने में आता है कि पैसे वालों का ही सम्मान होता है, क्या उससे गरीबों का अपमान नहीं होता ? सम्मान पैसे वालों का नहीं

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मंगल आशीष

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