Category: वचनामृत – अन्य
वर्तमान में जीना
भूत में जीओगे तो अटक जाओगे। भविष्य में भटक जाओगे। वर्तमान में नित नया वर्तमान आयेगा। बोर नहीं होगे, नित नया उत्साह आयेगा। निर्यापक मुनि
रति / राग / मोह
रति → झुकाव, राग→ लगाव, मोह → जुड़ाव। मुनि श्री प्रमाणसागर जी
मान
स्वाभिमान… स्व-अपेक्षित, अभिमान…. पर-अपेक्षित। मुनि श्री सुधासागर जी (निरभिमान… न स्व-अपेक्षित, ना पर अपेक्षित)
भीरुता और धर्म
धर्म-भीरू कहना सही नहीं है, धर्म से डरा नहीं जाता। संसार-भीरू धर्म करते हैं, यह सही है। मुनि श्री सुधासागर जी
दान / अहिंसा
एक चींटी बचाने का पुण्य सोने के पहाड़ को दान देने से भी ज्यादा होता है। आर्यिका श्री विज्ञानमती माता जी
दया
“दया”का उल्टा “याद” किसकी याद ? स्वयं की। आचार्य श्री विद्यासागर जी दया शुरु करनी चाहिये स्वयं/ अपने घर से। मुनि श्री अजितसागर जी
कारण
घर साफ़ रखने के लिये पहले गंदगी लाने वाली खिड़कियाँ बंद, तब झाड़ू। बाधक कारणों को पहले रोकें फिर साध्य पर ध्यान। निर्यापक मुनि श्री
भगवान दर्शन
जिसको पाषाण में भगवान के दर्शन होते हैं, एक दिन उसे साक्षात् भगवान के दर्शन हो जाते हैं। निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
Ritual / Spiritual
Ritual = भगवान को मानना/ धार्मिक क्रियायें Spiritual = भगवान की मानना/ धर्मात्मा मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
पुरुषार्थ
तुम अगर चाहते तो बहुत कुछ कर सकते थे, बहुत दूर निकल सकते थे। तुम ठहर गये, लाचार सरोवर की तरह; तुम यदि नदिया बनते
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