Category: वचनामृत – अन्य
खेल
खेल में हार न हो, सिर्फ जीत ही जीत हो तो खेल का आनंद क्या! जीवन का आनंद लेना है तो हार को भी स्वीकारना
इच्छायें
जीवन एक ऐसा सफ़र है कि मंज़िल पर पहुँचा तो मंज़िल ही बढ़ा दी – यही पतन का कारण है। क्या करें ? उन इच्छाओं
मूर्ति / चरण
मूर्ति से वीतरागता मिलती है और चरण से शक्त्ति (निर्वाण/मोक्ष जाने के प्रतीक)| मुनि श्री सुधासागर जी
मंदिर में रोना
आज संकट(कौरोना)के समय में मंदिरों के दरवाजे क्यों बंद हैं ? क्योंकि मंदिरों में रोने वाले उन्हें अपवित्र कर रहे थे। ऐसे ही सूतक के
कार्य / अकार्य
क्या करना ! रामायण से सीखें : भ्रातृ प्रेम; क्या नहीं करना ! महाभारत से सीखें : भ्रातृ द्वेष । मुनि श्री प्रमाणसागर जी
वैराग्य
दु:ख से ऊबकर लिया गया वैराग्य टिकता नहीं। (क्योंकि पुण्य आकर्षित करता रहता है-गुरुवर मुनि श्री क्षमासागर जी) टिकाऊ वैराग्य लेना है/प्रगति करनी है तो
पुरुषार्थ
पुरुषार्थ रूपी हनुमान ही, शांति रूपा सीता को आत्मा राम से मिला सकते हैं। मुनि श्री प्रमाणसागर जी
भाव-भंगिमा
भाव शब्दों के, भंगिमा शरीर की; दोनों एकरूप भी हो सकते हैं, भिन्न-भिन्न भी। मुनि श्री प्रमाणसागर जी
वैराग्य
वैराग्य में घर छोड़ा नहीं जाता। घर छूटता भी नहीं; अपने घर में आया जाता है। मुनि श्री प्रमाणसागर जी
सृष्टि / पुरुषार्थ
सृष्टि अधूरा देती है; पुरुषार्थ से हमको पूर्ण करने को कहती है, जैसे… बीज दिया, फ़सल किसान उगाये; मिट्टी दी, घड़ा कुम्हार बनाये; इन्द्रियां दीं,
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