Category: वचनामृत – अन्य
संसार
संसार/मिथ्यादर्शन का Test – मंदिर जा जाकर/धार्मिक क्रियायें करते-करते बोर होना/थकना/ऊबना। धार्मिक क्रियाओं से सम्यग्दृष्टि का आनंद/उत्साह बढ़ता है। मुनि श्री सुधासागर जी
मनुष्य
हाथी लाख का, मरे तो सवा लाख का; मनुष्य नाक का, मरे तो ख़ाक का; पर मानता है अपने को लाखों का। मुनि श्री प्रणम्यसागर
सपना
दिन का हो या रात का, सपना सपना होय; सपना अपना सा लगे, किन्तु न अपना होय। आचार्य श्री विद्यासागर जी दिन के सपने मोह
संतोष
साधु और पापी दोनों में ही संतोष दिखता/होता है। बस दोनों की मंज़िलें विपरीत दिशा में होतीं हैं। शकुनि ने अपनी बहन के साथ हुये
वृद्धावस्था
गन्ना पुराना, रस कम, निकालने में मेहनत ज्यादा, सो रस की कीमत भी ज्यादा। वृद्धावस्था कबाड़े की चीज़ नहीं, Antique है/ कीमती है। मुनि श्री
फटे में पैर डालना
दूसरों के यहाँ कुछ भी अच्छा/बुरा हो, हम कहते हैं – दूसरों के फटे में मैं क्यों पैर डालूँ। पर कर्म भी तो दूसरे हैं,
सम्बंध
प्राय: बेटे की कामना करते हैं पर केरल में बेटी की (गाय/भैंस के बछ्ड़ी की) वास्तविकता यह है कि न हमको बेटे से मतलब है
शिक्षा
लौकिक शिक्षा का अंत नहीं, धार्मिक शिक्षा से बहुत कम में बहुत काम हो जाता है; इसे रटना नहीं पड़ता, सिर्फ समझना होता है ।
कर्म-फल
कर्म किया तो फल मिलेगा। सेवक ने नहलाया तो सेवक को रोटी मिलेगी। सेठ को नहलाया तो बची रोटी, भगवान को तो पहली रोटी, चुपड़ी,
ज्ञान
हे ! दीमको, शास्त्रों को खा-खा कर अपने नाम/दाम की भूख मत मिटाओ, संस्कार/संस्कृति बनाने में ज्ञान का उपयोग/प्रभावना करो । मुनि श्री प्रमाणसागर जी
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