Category: वचनामृत – अन्य

नियतिवाद

नियतिवाद जीवन के अंतिम दिनों में चलेगा। लेकिन पहले आ गया तो समझना, जीवन का अंत आ गया। मुनि श्री सुधासागर जी

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बंधु

बंधु वह जो हितकारी हो, चाहे पराया ही क्यों ना हो । अपने ही शरीर में होने वाली बीमारी – अबंधु, जंगल की औषधि –

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सुख

सुख अपनों में ही नहीं, बाहर वालों में भी । दूसरों को सुखी बनाने का सुख, अपने सुख से ज्यादा होता है । पूर्ण सुख

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भ्रम

धरती/आसमान मिलते दिखाई देते हैं, पर हैं नहीं । आत्मा/शरीर भी एक रूप दिखते हैं, पर हैं नहीं । अज्ञानी इस भ्रम में शरीर को

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शरीर

शरीर भोजन से ही नहीं वातावरण से भी ग्रहण करके स्वस्थ रहता है । बचपन में ग्रहण ज्यादा, खर्च कम । उम्र के साथ ग्रहण

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पौष्टिक भोजन

ज्यादा पौष्टिक भोजन मन को विकारी बनाता है तथा तन को बीमार करता है। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी

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गंधी / गंदी

गंधी चारों और सुगंध फैलाता है जैसे हंस सरोवर की शोभा, गंदी गंदगी जैसे सरोवर में सूअर कीचड़-कीचड़ कर देता है। एक-एक गुण का आदान/प्रदान

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कर्म काटना

बच्चा (10 साल) – गुरु जी ! कहते हैं णमोकार (भगवान का नाम) पढ़ने से पाप कट जाते हैं ! फिर पाप करने से डरें

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मेरा कोई नहीं

“मेरा कोई नहीं” महत्वपूर्ण मंत्र है पर इसे जपने से निराशा/ दु:ख और-और बढ़ जाते हैं, ऐसा कैसे ? क्योंकि हम अधूरे मंत्र को जपते

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पुण्यात्मा / पापी

दोनों के भाव एक से होते हैं – पुण्यात्मा = भगवान के दर्शन में नित नया आनंद । पापी = भोगों में नित नया आनंद

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मंगल आशीष

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