Category: वचनामृत – अन्य
उलझन
उलझनों से कैसे निकलें ? 1. उलझन में उलझें नहीं । 2. आचार्य श्री विद्यासागर जी कहते हैं – “उलझन” में से “उ” निकाल कर,
साधु
भगवान ने कहा – संयम/ त्याग/ ब्रह्मचर्य में आनंद है । सामान्य गृहस्थ को विश्वास नहीं होता । साधुओं ने पूरा संयम/ ब्रह्मचर्य करके दिखाया,
आहार / भीख
भीख – लेने वाला जब धन्य हो, आहार – देने वाला जब धन्य हो । मुनि श्री सुधासागर जी
मंगलकारी
सुंदरता के साथ जब चारित्रिक-गुण मिल जाते हैं तब वह मंगलरूप-चेहरा हो जाता है और उनके दर्शन मंगलकारी बन जाते हैं जैसे आचार्य श्री विद्यासागर
भगवान / भक्त
कलयुग (पंचमकाल) में भगवान तो नहीं बन सकते, उसके लिये तो बहुत परिश्रम/ त्याग करना होता है; पर भक्त बनना आसान है, बस समर्पण करना
मोह
चिड़िया भी मनुष्यों की तरह बच्चों का लालन पालन/सुरक्षा देती है पर उन्हें उड़ना सिखाती/उड़ जाने देती है । मनुष्य अपने बच्चों को पकड़े ही
दिगम्बरत्व
दिगम्बर वेश को देखकर, ज्यादातर को वैराग्य के भाव आते हैं, कुछ को विकार के । तो कपड़ा कुछ विकारी आंखों पर डालना तर्क संगत
धर्म-ध्यान
धर्म में ध्यान आवश्यक नहीं, सहायक है । ध्यान तो जानवर भी कर लेते हैं । धर्म तो आत्मज्ञान से होता है/आवश्यक है । मुनि
परख
एक व्यक्ति का चयन होना था । उसे भोज पर बुलाया गया, सूप आया, मालिक नमक डाल कर पीने लगा, उसने भी नमक मिलाकर पी
अंतिम परिणति
सम्बंध शुरु होते हैं उत्साह के साथ पर समय के साथ नीरस होते जाते हैं । पढ़ाई में भी यही स्थिति, अन्य कामों में भी
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