Category: वचनामृत – अन्य

धर्मात्माओं की रक्षा

साधुजन अपनी रक्षा खुद नहीं करते, चाहे उनके पास कितनी भी मंत्रादि शक्त्तियाँ हों क्योंकि उसमें दुश्मन की हिंसा होगी । उनकी रक्षा का दायित्व

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खंडित मूर्ति

मंदिर परिसर में खंडित मूर्तियाँ नहीं रखनी चाहिये । उन्हें संग्रहालयों में भेज देना चाहिये । मुनि श्री सुधासागर जी

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बोल

मनचाहा बोलने के लिये, अनचाहा सुनने की क्षमता भी होनी चाहिये । मुनि श्री प्रमाणसागर जी (यश के प्रश्न के जवाब में)

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संत / साहित्य

संत —- जिनसे मन शांत हो । साहित्य – जिनसे हित सधे । मुनि श्री प्रमाणसागर जी

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मुसीबत

दुश्मन चाहे मनुष्य रूप में हो या कर्मरूप में, वह तो अपना स्वार्थ देखेगा ही । आप उसे यह नहीं कह सकते कि… हे !

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Object

मन का Waste बचाकर,Invest करो । Object से हटकर, Subject पर जाओ । Object तो एक के बाद एक आते ही रहते हैं, उनमें हम

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असंयम

संघ की आर्यिका माताओं के दीक्षा-दिवस पर आर्यिका विज्ञानमति माता जी अपनी दीक्षा के समय के भावों को व्यक्त करते हुए कहा… “उस समय मुझे

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अंतिम मंज़िल

राजा को चंदन की लकड़ी में, रंक को कंडों में जलाया जाता है । पर दोनों की राख एक सी, न चंदन वाली में सुगंध,

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प्रेम

जिससे जितनी बातें करते हो, उससे उतना ही प्रेम हो जाता है । भगवान/गुरु से कभी बातें की ? मुनि श्री अविचलसागर जी

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भगवान / कर्म

भगवान को कर्ता मानने वाले कहते हैं – “ऊपर वाला पांसा फेंके, नीचे चलते दांव”, कर्मों पर विश्वासी कहते हैं – “अंदर वाला पांसा फेंके,

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मंगल आशीष

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