Category: वचनामृत – अन्य
जिओ और जीने दो / संलेखना
जिओ और जीने दो की सर्वोच्च साधना संलेखना में ही भायी जाती तथा की जाती है । (जीवों की रक्षा ना कर पाने पर देह
व्रत / प्रवृत्ति / निवृत्ति
प्रवृत्ति – अहिंसा का पालन, निवृत्ति – हिंसा छोड़ना, व्रत – प्रवृत्ति/निवृत्ति में सहायक । मुनि श्री प्रमाणसागर जी
पुरुषार्थ
गड्डे में गिरे व्यक्तियों में से पहले किसको निकाला जाता है ? जो खड़ा होता है, फिर जो बैठा होता है, अंत में जो लेटा
त्याग
मूल्य त्याग का नहीं, त्याग को निभाने के लिये आप कितना मूल्य चुकाने को तैयार हैं, वह तय करता है कि त्याग बड़ा है या
विज्ञान / वीतराग विज्ञान
विज्ञान प्रयोगों पर आधारित, निर्णय बदलते रहते हैं, वीतराग विज्ञान, आत्मानुभव पर आधारित, ना बदलने वाला । मुनि श्री प्रमाणसागर जी
सरल तप
सबसे सरल तप – प्रसन्न रहना, इससे पुण्यबंध होता है, पापोदय शांत होता है, तथा कर्म झरते भी हैं । मुनि श्री प्रमाणसागर जी
ज्येष्ठ / श्रेष्ठ
जो ज्येष्ठ बनने में लग जाते हैं, वे श्रेष्ठ नहीं बन पाते हैं । जो श्रेष्ठ बनने के प्रयास में लग जाते हैं, वे ज्येष्ठ
स्वाभिमान/अभिमान
स्वाभिमान में अपना तथा दूसरे का मान, अभिमान में अपना मान तथा दूसरे का अपमान । मुनि श्री प्रमाणसागर जी
गुरु / शिष्य
शिष्य के ऊपर कालिख लग जाये तो चलेगा, पर कालिख लगा गुरु नहीं चलेगा, वरना शिष्य अपनी कालिख किस दर्पण में देखेगा ! ना ही
आराधना
पूरी साल आराधना करना तो पढ़ाई है । पर जिस दिन आराधना ना हो पाये, उस दिन कितना अफसोस होता है/कितना प्रायश्चित लेता है, यह
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