Category: अगला-कदम
स्वभाव / विभाव
जो अन्य के कारण भाव हों, वह विभाव । तो कर्मोदय के प्रभाव से सब विभाव हुआ न !!
श्वासोच्छ्वास
पंचेन्द्रिय की श्वसन क्रिया दिखती है, उसे “आण-प्राण” कहते हैं । जिनकी देखने में नहीं आती, उसे श्वासोच्छ्वास कहते हैं । आ. श्री विद्यासागर जी
केवल दर्शन / ज्ञान
केवल-ज्ञान बाह्य उद्दोत । केवल-दर्शन अंतरंग, उत्तर से दृष्टि हटाये बिना, दक्षिण में देखने का प्रयास, 1Sec.या कम दर्शनोपयोग काल है । मुख्तार जी व्य.कृ. – 2/828
उपाय / उपेय
उपाय = कारण – मोक्ष के लिये रत्नत्रय उपेय = कार्य (मोक्ष) । मुनि श्री सुधासागर जी
अनिवृत्तिकरण
अ = नहीं, निवृत्ति = भिन्नता, करण = परिणाम । एक समयावर्ती जीवों के एक से परिणाम, पर द्वितीय समय में अनंतगुणी विशुद्धता । श्री
कर्मों का विभाजन
आयु, वेदनीय और गोत्र प्रकृतियों के उत्तर भेदों में कर्मों का विभाजन नहीं होता, बाकी 5 प्रकृतियों में होता है । करूणानुयोग प्रवेशिका – 539
7 वें गुणस्थान को अप्रमत्त क्यों ?
7 वें गुणस्थान में बुद्धिपूर्वक अप्रमत्त दशा रहती है । पूर्ण अवस्था तो 14 वें गुणस्थान में ही होती है । व्य. कृ. – मुख्तार
अगुरुलघु
शरीर को अति भारी/हलका नहीं होने देता । अन्य पुदगलों में भी यही गुण पैदा करता है । पं. रतनलाल बैनाड़ा जी
मोहनीय का बंध
मोहनीय का उदय/सत्ता दसवें गुणस्थान तक (बाकी 3 घातिया जैसा), पर बंध तीनों से अलग, नौवें गुणस्थान तक ही जबकि बाकी तीनों का दसवें तक होता
प्रदेश बंध
11 से 13 गुणस्थानों में प्रदेश बंध, निचले गुणस्थानों के प्रदेश बंध से बहुत कम होता है , क्योंकि योग बहुत कम हो जाता है
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