Category: अगला-कदम

मिथ्यात्व

मिथ्यात्व बंध में कारण नहीं, अधिकरण है । बंध में कारण तो दो ही होते हैं – कषाय और योग । (भेद 4 हैं, जिनमें

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कषाय

कोई कषाय एक मुहूर्त तक नहीं रहती । तथा संज्वलन को छोड़कर बाकी तीनों मुहूर्त से ज्यादा समय के लिये होती हैं । दोनों कथन

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सुख/दु:ख

अनुभागानुसार ही जीव के सुख दु:ख में हीनाधिकता होती है । जैसे देवगति में पुण्य प्रकृति समान होने पर भी कोई वाहन (संक्लेश परिणाम), उस

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कुल/जाति

योनियों की विविधता – जाति शरीर के योग्य वर्गणाओं की विविधता – कुल (24 ठाणा)

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प्रभाव

परिणामों के प्रभाव से निर्जीव कर्मवर्गणाऐं भी शुभ/अशुभ हो जाती हैं ।

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अभेद

स्त्री पुरुष – भेद दृष्टि, जीव – अभेद; जीव, अजीव – भेद दृष्टि, द्रव्य – अभेद; और हम अपने और भाई के बच्चों में भेद

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ज्ञान/लक्षण

क्या मति/श्रुत ज्ञान, आत्मा के लक्षण हैं ? नहीं ये तो विभाव हैं । केवलज्ञान/दर्शन ? नहीं ये तो किसी किसी के ही, तथा हर

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पंचास्तिकाय

पुद्गल को अस्तिकाय उपचार से कहा है, क्योंकि शुद्ध पुद्गल (अणु) एक प्रदेशी ही होता है । मुनि श्री ज्ञानसागर जी

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सम्यक्त्व

उपशम सम्यक्त्व – चारों गतियों में देव गति के अलावा, सिर्फ़ पर्याप्तक अवस्था में ही । क्षायिक तथा क्षयोपशमिक सम्यग्दर्शन – चारों गतियों के पर्याप्तक

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सम्यग्द्रष्टि की संख्या

ढ़ाई द्वीप के चौथे गुणस्थानवर्ती मनुष्य 700 करोड़ हैं । तीनों लोक में सम्यग्द्रष्टि जीव असंख्यात हैं । पं. श्री रतनलाल बैनाड़ा जी

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मंगल आशीष

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