Category: अगला-कदम

मिथ्यात्व

जो अनध्यवसाय*, संशय व विपर्यय युक्त हो । *अनध्यवसाय = बिना उद्यम; जैसे कुछ है, होगा, हमें क्या ! क्षु. ध्यानसागर जी

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परमुख

आयु और मोहनीय कर्म प्रकृतियों का परमुख उदय नहीं होता है । बाकी प्रकृतियों का स्वमुख और परमुख दोनों उदय होते हैं । श्री हरिवंश

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पंचमकाल में सम्यग्दर्शन

सम्यग्द्रष्टि जन्म नहीं लेते, इसका प्रमाण ? पं. श्री रतनलाल बैनाड़ा जी आचार्य श्री विद्यासागर जी – रत्नकरण्ड़ श्रावकाचार गाथा 36 में लिखा है –

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दिग्व्रत

दिग्व्रत की सीमा के बाहर उपचार से महाव्रत क्यों कहा जबकि प्रत्याख्यान का सदभाव है ? प्रत्याख्यान इतना मंद है कि उसे ढ़ूँढ़ पाना भी

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आयुबंध

जघन्य स्थिति – बंध (अंतर्मुहुर्त) संख्यात वर्ष वाले तिर्यंच/मनुष्यों में होती है । तत्वार्थसूत्र टीका – 507 देव/नारकियों के इसीलिये नहीं क्योंकि यह अंतर्मुहुर्त क्षुद्र-भव

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वेदनीय उदय

असाता का उदय उत्कृष्ट 33 सागर (7 नरक), साता का 6 माह (सर्वाथसिद्धि तक में ) ।

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तीर्थंकर बंध

चारों प्रकार के सम्यग्दर्शन (द्वितियोपशम में भी) के साथ तीर्थंकर प्रकृति का बंध हो सकता है ।

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निद्रा/प्रचला

इनका उदय 12 वें गुणास्थान तक होता है पर प्रभाव तो दिखता नहीं है ? प्रमाद के अभाव में कर्मोदय का प्रभाव गौण हो जाता

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मोह/बंध

सिर्फ़ पुदगल के अणुओं में रुक्षता/स्निग्धता होती है । इसलिये (शायद) हम पुदगलों से रति/अरति करते हैं, और किसी द्रव्य से नहीं । न्यूनतम शक्ति

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नोकर्म और निमित्त में अंतर

नोकर्म – कर्म-बंध में सहकारी, निमित्त – व्यापक, कारण – जिसके बिना कार्य न हो, जैसे क्षायिक सम्यग्दर्शन के लिए, केवली के पाद-मूल ।

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मंगल आशीष

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