Category: अगला-कदम
द्रव्यों की पर्याय
मात्र जीव और पुदगलों की व्यंजन पर्याय होती है, बाकी सबकी अर्थ पर्याय होती है । श्री बृहज्जिनोपदेश – 85
परमाणु में जाति भेद
परमाणु में जाति भेद नहीं होता, तभी तो लकड़ी (पृथ्वी) से अग्नि, भोजन से वायु (वात), अग्नि (पित्त) रूप परिणमन होता देखा जाता है ।
केवली समुद्घात
दंड़ – औदारिक काय योग – पर्याप्ति काल कपाट – औदारिक मिश्र काय योग – अपर्याप्ति काल प्रतर – कार्मण काय योग – अपर्याप्ति काल
आत्मा
आत्मा तो लोक-प्रमाण है, शरीर-प्रमाण तो शरीर नाम कर्म की वजह से रहती है । पं. रतनलाल बैनाड़ा जी
उदीरणा
उदय व उदीरणा अकाम या सविपाक निर्जरा में भी होतीं हैं । पं. जवाहर लाल जी
लोक का विभाजन
लोक का विभाजन धर्म और अधर्म द्रव्यों के कारण से है । पं. रतनलाल बैनाड़ा जी
रौद्रध्यान
देशविरत के रौद्रध्यान हिंसा आदि के आवेश से या वित्तादि के परतंत्र होने से कदाचित भी हो सकता है । पर वह नरक का कारण नहीं
शुद्ध द्रव्य
द्रव्यों में उत्पाद व्यय/षटगुणी वृद्धि हानि, अगुरूलघु गुण की अपेक्षा से है । पं रतनलाल बैनाड़ा जी
उदय/उदीरणा/अकाल मृत्यु
कुछ अपवादों के साथ छठवें गुणस्थान तक जिन कर्मों का उदय है उनकी उदीरणा भी अवश्य होती है । मनुष्यायु का हर समय उदय भी
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