प्रवृत्ति – अहिंसा का पालन,
निवृत्ति – हिंसा छोड़ना,
व्रत – प्रवृत्ति/निवृत्ति में सहायक ।

मुनि श्री प्रमाणसागर जी

डॉक्टरी में एक और महत्वपूर्ण शिक्षा दी जाती है – Case बिगड़ने पर Expert Specialist को कब/समय रहते बुलाना होगा ।

हमको भी यह मालूम होना चाहिये कि कब तक पुरुषार्थ के सहारे रहें और कब गुरु/भगवान की शरण में पहुँचना चाहिये ।

(डॉ. एस. एम. जैन)

गड्डे में गिरे व्यक्तियों में से पहले किसको निकाला जाता है ?

जो खड़ा होता है, फिर जो बैठा होता है, अंत में जो लेटा होता है ।

मुनि श्री विनिश्चयसागर जी

मूल्य त्याग का नहीं, त्याग को निभाने के लिये आप कितना मूल्य चुकाने को तैयार हैं, वह तय करता है कि त्याग बड़ा है या छोटा ।
वह तय करता है कि उसका फल बड़ा मिलेगा या छोटा ।

मुनि श्री सुधासागर जी

छोटे भाई ने बड़े भाई का लड्डु मुँह में डाला ही था कि बड़े ने उसका मुँह दबाकर लड्डु निकाल लिया ।
छोटा – जितनी देर लड्डु मेरे मुँह में रहा, उतने समय का मिठास तो मैंने ले ही लिया !
धर्म याद नहीं होता तो कम से कम जितनी देर सुन रहे हो, उतनी देर मिठास तो आया ना !!

आर्यिका श्री वर्धस्वनंदनी जी

पाचन-शक्ति के अभाव में, अकेले घी पीने से कोई पहलवान नहीं बनता,
इसी तरह श्रद्धा/जिज्ञासा/प्रारम्भिक-ज्ञान बिना,अध्यात्म-ग्रंथ पढ़ लेने से कोई ज्ञानी नहीं बनता ।

दर्पण में छवि दुगनी दूरी पर बनती/दिखती है ।
दूसरे की दृष्टी से अपने आप को देखोगे तो बहुत दूरी से देखने के कारण सही नहीं देख पाओगे ।
फिर दूसरे के दर्पण में द्वेष/राग/हठग्राहिता/ईर्षा की धूल हो सकती है, अज्ञान का टेड़ापन हो सकता है ।

चिंतन

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