यदि ख़ुदा नहीं है, तो उसका ज़िक्र क्यों ?
और अगर ख़ुदा है, तो फ़िक्र क्यों ??

(श्री अरविंद)

कटु शब्दों को एक कान से सुनकर दूसरे से निकाल दें।
प्रशंसा के लिये दोनों कान बंद कर लें।
धर्म-चर्चा के लिये दोनों खुले रक्खें ।

(सुरेश भाई के कथन पर आधारित चिंतन)

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