आज आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को सब ने स्वीकार कर लिया है। यह वैसा ही है जैसे कालिदास जिस डाल पर बैठे थे उसी को काट रहे थे। यह हमारी रियल इंटेलिजेंस को बर्बाद कर रहा है। यही हाल रहा तो कुछ दिनों में हर घर वृद्धाश्रम बन जाएगा और सेवा करेंगे रोबोट।
उपयोगिता का संबंध भी समाप्त हो गया यानी जीवत्व समाप्त हो गया जो जीव का आखरी काम था उपकार करना, वह भी समाप्त।

मुनि श्री सौम्य सागर जी (प्रवचन- 15 फ़रवरी)

व्यक्ति जीवित है/ होश में है, परीक्षण के लिये नुकीली चीज पैरों में चुभा कर देखते हैं।
दुःख भी ऐसे ही हैं, हमको एहसास दिलाते हैं कि हम जीवित हैं/ होश में हैं।

चिंतन

जब दु:ख जन्म में ही होता है, मरण में नहीं तो ऐसा क्यों कहा जाता है की जन्म-मरण में बहुत दु:ख होता है?

योगेंद्र

जन्म-मरण कहने में आ जाता है अन्यथा दु:ख तो जन्म में ही होता है, मरण में नहीं।
मरण के भय से जरूर सब दुखी रहते हैं।

मुनि श्री सौम्य सागर जी (जिज्ञासा समाधान)

आचार्य श्री विद्यासागर जी तथा मुनि श्री सौम्य सागर जी आसपास के कमरों में थे। बरसात शुरू हो गई। सौम्य सागर जी ने अपनी खिड़कियाँ और दरवाजे बंद कर लिए। ध्यान आया तब आचार्य श्री का कमरा भी जाकर देखा, दोनों खुले हुए थे और आचार्य श्री ध्यान में थे, उनके ऊपर बौछारें आ रहीं थीं। दरवाजा खिड़की बंद की। जब आचार्य ध्यान से उठे उनसे क्षमा मांगी कि मैंने अपनी खिड़की तो बंद कर ली पर आपकी देर से की।
आचार्य श्री… जब बौछारें गिर रही थीं तब ध्यान बहुत अच्छा लग रहा था, बंद होने पर डिस्टर्ब हो गया।

मुनि श्री सौम्य सागर जी (प्रवचन 9 फ़रवरी)

सत् अस्तित्व रूप है। सत्य हमेशा सत् हो आवश्यक नहीं।
सत्य धर्म नहीं धर्म तो अहिंसा है, सत्य उसकी रक्षा करता है।

निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी

कन्यादान को दान की श्रेणी में क्यों नहीं लिया ?
दान उसे कहते है जिसमें उपकार का भाव होता है।

निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी

पिता कन्या का स्वामी नहीं है। कन्या की स्वतंत्र सत्ता है। तो पिता दान कैसे कर सकता है ?

कमल कांत

भोजन तो बाह्य क्रिया है तो शुद्ध भोजन को इतना महत्व क्यों दिया जाता है ?
हमको तो अंतरंग मन को शुद्ध करना चाहिए ?
आचार्य श्री विद्यासागर जी कहते थे जिसका अंतरंग पवित्र होगा वही बाह्य शुद्धि रख सकता है और जो बाह्य शुद्धि रखता है, उसका अंतरंग और पवित्र होता जाता है जैसे स्वादिष्ट मिष्टान्न खाकर मुंह से वाह निकल जाती है।

मुनि श्री सौम्य सागर जी (प्रवचन 12 फ़रवरी)

एक सिपाही ने मुझसे पूछा आपका यह दिगम्बर रूप समाज को क्या मैसेज देता है ?
दिगम्बरत्व, कम अर्थ में काम चलाने का अर्थशास्त्र है।

मुनि श्री सौम्य सागर जी (प्रवचन- 12 फ़रवरी)

नास्तिक ने कहा जब भगवान एक रूप नहीं है इससे सिद्ध होता है कि भगवान का अस्तित्व होता ही नहीं है।
गुरु… सबके अपने अपने पिता होते हैं। उनका रूप अलग-अलग होता है फिर भी वे सब पिता हैं। ऐसे ही परमपिता सबके अलग-अलग होते हैं पर उनके गुण एक समान होते हैं, संपूर्ण गुण वाले।

आर्यिका श्री पूर्णमति माता जी- (प्रवचन – 11 फ़रवरी)

युवा तथा वृद्ध तपस्या में लीन थे।
एक देव आये, दोनों ने जिज्ञासा रखी कि हमको मोक्ष कब होगा ?
देव… वृद्ध तपस्वी तीन भव से मोक्ष जा सकते हो।
यह सुन, दुखी हो कर वृद्ध ने तपस्या छोड़ दी कि तीन भव और शेष हैं।
युवा जिस इमली के पेड़ के नीचे तपस्या कर रहे हैं, उनको इतने भव लग सकते हैं।
युवा आह्लादित हो गये कि मेरा संसार सीमित हो गया। उसी पेड़ के नीचे ध्यानस्थ हो गये। पेड़ के पत्ते गिरना शुरु हो गये।

मुनि श्री मंगलानन्द सागर जी

सुकून भी ढूँढना पड़े तो इससे बड़ा और कोई दर्द नहीं…!
यदि तुम में खुद को बदलने की हिम्मत नहीं,
तो तुम्हें भगवान या किस्मत को कोसने का हक भी नहीं…!!

धनजी भाई – भोपाल

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