अनुकूलताओं में यदि ज्यादा खुश हुये तो प्रतिकूलताओं में ज्यादा दुःखी होंगे ही ।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

दवा की शीशी पर पूरे Ingredients , बीमारी का नाम तथा लेने की विधि लिखी रहती है,

फिर  भी Under Direction Of Doctor लिखा जाता है ।

शास्त्रों में सबकुछ लिखा होने के बावजूद भी गुरू के Direction की आवश्यकता है ।

मुनि श्री क्षमासागर जी

झांसी में एक 85 वर्ष के बुज़ुर्ग ने इच्छा ज़ाहिर की, कि कंदमूल का त्याग करना है ।
गुरू श्री – गाजर खाते हो ?
बुज़ुर्ग ने कहा – हां आँख कमजोर है, इसलिये खाता हूं ।
गुरू श्री – गाजर के अलावा बाकी कंदमूल का त्याग कर दो ।

श्री विमल चौधरी

पर पर दया करना, प्राय: अध्यात्म से दूर जाना लगता है ।
स्वंय के साथ पर का और पर के साथ स्वंय का ज्ञान होता ही है ।
चँद्रमंड़ल को देखते हैं तो नभमंड़ल भी दिखता ही है ।

वासना का विलास मोह है और दया का विकास मोक्ष है ।

अधूरी दया / करूणा, मोह का अंश नहीं, अपितु आंशिक मोहध्वंस है ।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

आज उस Area से निकल रहा था, जहां Non-Veg लटके रहते हैं ।
सोचा गंदगी दिखे तो अंदर देखने लगो ।
बात गंदगी से शुरू हुई तो अंदर की गंदगी दिखने लगी,जो बाहर की गंदगी से बहुत ज्यादा थी।

चिंतन

भगवान का पराक्रम/पुरूषार्थ दूसरों की सहायता से रहित होता है।

जैसे तलवारबाजी में माहिर, हवा में गज़ब के पैंतरे दिखा रहा हो,
ना तो किसी को मार रहा हो और ना ही किसी को बचा रहा हो।

दूसरे लोग उसे देखकर तलवारबाजी के पैंतरे तो सीख ही सकते हैं ।

एक आदमी नरक से छुपता छिपाता खिसक कर स्वर्ग में पहुंच गया। स्वर्ग वालों ने पकड़ लिया और बहुत मारा।
निकलते समय बोला कि तुम्हारी इन्हीं हरकतों की वजह से कोई स्वर्ग में नहीं आना चाहता ।

(श्री धर्मेंद्र)

अच्छे लोगों को अपना चरित्र ऐसा प्रस्तुत करना चाहिये ,जिसे देख कर बुरे लोग भी प्रभावित हों ।

Need और Greed की Boundary Clearly Mark होनी चाहिये ।

गांधी जी से पूछा कि आप इतना कम क्यों पहनते हैं,
इतना कम क्यों खाते हैं ?
गांधी जी ने ज़बाब दिया कि “मैं उतना ही खाता और पहनता हूं,
जितना आज कि परिस्थिति में इस गरीब देश में मेरा हिस्सा है ।”                       Ambition Principles के साथ होना चाहिये ।                                                            वैभव के प्रति Trusteeship की भावना होनी चाहिये ।

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