Category: अगला-कदम
शुक्ल-ध्यान
दूसरे शुक्ल-ध्यान का समय, पहले शुक्ल-ध्यान से कम होता है, इसलिये इसमें योग-परिवर्तन के लिये समय नहीं रहता। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
सूक्ष्मसाम्पराय
सूक्ष्मसाम्पराय को साम्पराय-चारित्र भी कहा है। सो सूक्ष्मसाम्पराय कषाय, गुणस्थान, चारित्र का भी नाम है। 10वें गुणस्थान तक चारित्र भी सराग, सम्यग्दर्शन भी चाहे क्षायिक
निर्जरा
असंख्यात गुणी निर्जरा के 10-11 स्थान हैं – सम्यक्त्व(4थे गुणस्थान) के समय से लेकर 13 गुणस्थान तथा केवली समुद्घात तक। 14वें गुणस्थान में तो 85
“ज्ञानावरणे प्रज्ञा-अप्रज्ञाने”
ज्ञानावरण के सद्भाव में व अन्य कर्मों के सद्भाव में भी, ज्ञानावरण के क्षयोपशम से जो ज्ञान प्रकट होता है, वह प्रज्ञा है, जो प्रकट
संक्रमण
सामान्य संक्रमण, हर गुणस्थान में, हर समय। जहाँ-जहाँ अपूर्व-करण, वहाँ गुण-संक्रमण। जिस गुणस्थान में उपशम/क्षय, उनका गुण-संक्रमण, उस गुणस्थान में। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
शुद्ध-भाव
संसारी जीवों के, आगम में दो ही भाव हैं – शुभ व अशुभ, शुद्ध-भाव तो सिद्धों में होगा। अध्यात्म में शुद्ध-भाव आता है, जिसका अर्थ
विपाकी
1. जीव विपाकी = जीव को फलानुभूति जैसे ज्ञानावरण/दर्शनावरण 2. पुद्गल विपाकी = शरीर को फलानुभूति जैसे नामकर्म आदि 3. क्षेत्र विपाकी = एक क्षेत्र
असंख्यात गुणी निर्जरा
इसे गुण श्रेणी निर्जरा भी कहते हैं। गुण = निर्जरा गुणाकार रूप से। श्रेणी = पंक्ति में एक के बाद एक। पहले समय में जितना
व्यवहार / निश्चय
दूध में घी होता है, इसको आचार्यों ने निश्चय कहा है। निश्चय ही घी की उपलब्धि है। निश्चय के लिये समीचीन व्यवहार अनिवार्य है। व्यवहार
अनुजीवी / प्रतिजीवी
अनुजीवी – चेतना के गुण, प्रतिजीवी – शरीर के, जैसे आयु, एक शरीर के बाद अगला शरीर मिलेगा। (तो आयु शरीर के साथ रहेगी। शरीर
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