Category: अगला-कदम

पदार्थ / द्रव्य / तत्व

वस्तु को द्रव्य, क्षेत्र, काल या भाव की अपेक्षा समझा जा सकता है, जैसे – 1. जीव पदार्थ  – द्रव्य की अपेक्षा वस्तु है 2.

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जैन धर्म के नाम

1. निर्ग्रन्थ-धर्म : ग्रंथी रहित यानि दिगम्बर मुनियों का धर्म । सम्राट अशोक के शिलालेखों में वर्णन आता है । 2. अर्हत्-धर्म : अरिहंत भगवान

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आत्मा के भेद

आत्मा के भेद उनकी क्रियाओं के अनुसार आचार्य कुंद्कुंद ने किये हैं – जो बाहर की ओर देखे “बहरात्मा”, अंदर की ओर देखे “अंतरात्मा”, पापों

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संक्रमण

आयु और मोहनीय का संक्रमण नहीं होता । गोत्र, नामकर्म आदि के संक्रमण सत्ता की अवस्था में ही संभव है, उदय में आने के बाद

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श्रुतज्ञान

पाँचों ज्ञानों में सिर्फ श्रुतज्ञान ही स्वार्थ/ परमार्थ और द्रव्य/ भावश्रुत के भेद से 2 प्रकार का होता है । द्रव्यश्रुत ज्ञान जब भावश्रुत रूप

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कर्मवर्गणा

2 बच्चों को एक सी गुड़ियाऐं लाकर दीं । पहचान कराने एक पर हँसता हुआ तथा दूसरे पर रोता हुआ चेहरा बना दिया । थोड़े

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निर्विकल्प समाधि और केवलज्ञान

निर्विकल्प समाधि में ज्ञान – तात्कालिक, क्षयोपशमिक, एकांकी (जब आत्मा का ज्ञान, तब बाहर का नहीं) । केवलज्ञान – शाश्वत, क्षायिक, अनेकांकी होता है ।

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मोहनीय / सुख

मोहनीय तो 10वें गुणस्थान के अंत में समाप्त हो जाता है तो अनंत सुख 11, 12, गुणस्थान में क्यों नहीं ? क्योंकि ज्ञान पर आवरण

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असंज्ञी का ज्ञान

असंज्ञी का मतिज्ञान भी धारणा तक होता है । वे इंद्रियों की सहायता तथा भाव-श्रुत से (संज्ञाओं के उदय में) सारे काम करते हैं ।

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मंगल आशीष

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