Category: अगला-कदम
तीर्थंकर प्रकृति उदय
इसकी स्थिति अंत:कोड़ाकोड़ी सागर होती है । आबाधा काल अंतर्मुहूर्त । परमुख उदय तो अंतर्मुहूर्त बाद, पर स्वमुख 13वें/14वें गुणस्थान में । ज्ञानशाला
विग्रह गति में कर्म बंध
कार्मण शरीर की वजह से विग्रह गति में कर्म बंध होता है । पं. रतनलाल बैनाड़ा जी
अनंत बार ग्रैवियक
अनंत बार ग्रैवियक गये, कुछ नहीं हुआ; इससे मुनि पद की भूमिका कम नहीं हुई, मिथ्यात्व(या पुरुषार्थ की कमी) का दोष है । मुनि श्री
मोहनीय स्थिति
मोहनीय की जघन्य स्थिति-बंध 9वें गुणस्थान में, जबकि बाकी कर्मों की 10वें गुणस्थान में, ऐसा क्यों ? 9वें गुणस्थान में मोहनीय इतना कमजोर हो जाता
क्षयोपशम भाव
मिथ्यादृष्टि के भी क्षयोपशम-भाव होते हैं, 1 से 12 गुणस्थानों में मतिज्ञान आदि 4 ज्ञान, 3 अज्ञान, 3 दर्शन, दानादि-5लब्धि, सम्यक्त्व, चारित्र और संयमासंयम ।
प्रशम
सम्यग्दृष्टियों के प्रशम भाव कैसे ? प्रशम भाव के दो भेद – 1. नारकियों/गृहस्थों/त्रियंचों/देवों का, जिसमें विरोधी हिंसा का त्याग नहीं । 2. मुनियों का
असाता और भूख
असाता से भूख लगती है , भूख ना लगना, तीव्र असाता से । मुनि श्री प्रमाणसागर जी
वेदनीय की स्थिति
असाता का उत्कृष्ट उदय 33 सागर (7वें नरक में), पर इस अवधि में साता का भी उदय आ सकता है, परन्तु जघन्य होने से उसका
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