Category: अगला-कदम

दर्शनावरण

पहले चार सब जीवों के हर समय उदय में रहते हैं । बाकी पाँच निद्राओं में से कोई एक उदय में रहती है और ये

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कर्मों में परिवर्तन

कर्मों में उत्कर्षणादि हर समय अबुद्धिपूर्वक होता रहता है । पर मोक्ष के हेतु निर्जरादि/तप बुद्धिपूर्वक होता है । मुनि श्री सुधासागर जी

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प्रदेशी

बहुप्रदेशी भी अभेद दृष्टि से एक प्रदेशी कहा जा सकता है, क्योंकि प्रदेश खंड़ित नहीं होते जैसे सूत की माला में गाँठें । जैसे चारों

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सप्रतिष्ठित / अप्रतिष्ठित

प्रत्येक जीव जब सप्रतिष्ठित होता है तो अनंत जीव उसके आश्रित रहते हैं । अप्रतिष्ठित होने पर असंख्यात/संख्यात उस शरीर में रहते तो हैं पर

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सासादन / मिश्र

सासादन-सम्यग्दृष्टि इसलिये कहा क्योंकि इसमें जीव सम्यग्दर्शन से ही आता है जबकि मिश्र में मिथ्यात्व से भी । चिंतन

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देव

मिथ्यादृष्टि, ग्रैवेयक जा सकता है पर सौधर्म/लोकपाल/प्रतींद्र नहीं बन सकता है । ऊपर वाले देव इनके देवर्द्धिदर्शन से सम्यग्दर्शन प्राप्त कर लेते हैं ।

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श्वासोच्छ्वास

पंचेन्द्रिय की श्वसन क्रिया दिखती है, उसे “आण-प्राण” कहते हैं । जिनकी देखने में नहीं आती, उसे श्वासोच्छ्वास कहते हैं । आ. श्री विद्यासागर जी

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केवल दर्शन / ज्ञान

केवल-ज्ञान बाह्य उद्दोत । केवल-दर्शन अंतरंग, उत्तर से दृष्टि हटाये बिना, दक्षिण में देखने का प्रयास, 1Sec.या कम दर्शनोपयोग काल है । मुख्तार जी व्य.कृ. – 2/828

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मंगल आशीष

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May 16, 2018

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