Category: वचनामृत – मुनि श्री क्षमासागर

संवेदना

जहाँ तरलता थी, मैं डूबता चला गया ; जहाँ सरलता थी, मैं झुकता चला गया ; संवेदनाओं ने मुझे जहाँ से छुआ, मैं वहीं से

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असाधारणता

असाधारण कहलाने की चेष्टा न करें, बल्कि साधारण रहकर असाधारणता को हासिल करें ।

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सत्य

सत्य की भूख तो सबको होती ही है. पर.. जब सत्य परोसा जाता है तो बहुत कम लोगो को उसका स्वाद पसंद आता है। यदि

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देवदर्शन

भगवान के दर्शन करते समय उनकी ओर पीठ नहीं होनी चाहिये क्यों ? 1) भगवान का अपमान न हो 2) संसार को पीठ दिखाकर आने

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मान/अपमान

अपमान सहना कठिन है, पर मान को सहना उससे भी कठिन है । गुरुवर मुनि श्री क्षमासागर जी

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मंगल आशीष

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