Category: वचनामृत – मुनि श्री क्षमासागर

स्व-पर कल्याण

जो अपने कल्याण में लगा हुआ है, वह दूसरों का अकल्याण कर ही नहीं सकता । क्योंकि दूसरे के अकल्याण के भाव आने से पहले

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समता

भूतकाल के विकल्पों तथा भविष्य के भय से विचलित ना होना । जैसे छोटे छोटे बच्चे और साधु अनुकूल/प्रतिकूल परिस्थतिओं में समता रखते हैं ।

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निंदा / मान

निंदा सुनने/सुनाने में मान को सुकून मिलता है । गुरुवर मुनि श्री क्षमासागर जी

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कर्म-सिद्धांत

कर्म-सिद्धांत के दो महत्वपूर्ण/उपयोगी पहलू – 1. मेरे वर्तमान की जिम्मेदारी सिर्फ मेरी है । 2. अपने भविष्य को बनाना/बिगाड़ना मेरे हाथ में है ।

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पुरुषार्थ और संगति

दीपक दो प्रकार से जलाया जा सकता है – 1. माचिस पर तीली रगड़ करके – पुरुषार्थ 2. जलते हुए दीपक के सामीप्य से –

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परमात्मा

परमात्मा एक अवस्था है जो व्यवस्था नहीं करती बल्कि जिसके माध्यम से हम व्यवस्थित हो जाते हैं । परमात्म अवस्था किसी भी जीव को प्राप्त

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कषाय

एक रेत का कण, खीर का आनंद समाप्त, एक छोटी सी दुर्गंध पूरे वातावरण को दूषित, नीम का बीज भी कड़ुवा होता है । कषाय

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बारह भावना

बारह भावना में मोक्ष क्यों नहीं ? समिति, गुप्ति आदि धार्मिक क्रियाओं से संवर; तपादि से निर्जरा और इनकी पूर्णता का नाम ही तो मोक्ष

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झुकना

अगरबत्ती को भी (जलने) सुगंध बिखेरने के लिये झुकना पड़ता है । गुरुवर मुनि श्री क्षमासागर जी

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साधना

साध (इच्छा) + ना । पारस बनने के लिये, पारस पत्थर की इच्छा का त्याग करना होगा । गुरुवर मुनि श्री क्षमासागर जी

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मंगल आशीष

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