Category: अगला-कदम
कर्ता
निश्चय-नय से जिस वस्तु में परिणमन होता है, वही वस्तु उस परिणमन की कर्ता भी होती है । 1. शुद्ध निश्चय-नय से शुद्ध भावों का
विग्रह गति में लेश्या
विग्रह गति में भाव लेश्या छहों हो सकती हैं, पर द्रव्य लेश्या कापोत ही होती है । पं रतनलाल बैनाड़ा जी
आत्मा चेतनारूप या ज्ञाता दृष्टा रूप ?
अभेद दृष्टि से चेतना रूप । चेतना को समझने के लिये भेद दृष्टि से आत्मा, ज्ञाता दृष्टा रूप । और विस्तार से समझना हो तो
कर्म का विभाजन
जिस अनुभाग व स्थिति से कोई कर्म-बंध होता है, उसी अनुभाग व स्थिति से 7 कर्मों में विभाजन होता है । पं. रतनलाल बैनाड़ा जी
संक्लेश/विशुद्ध स्थान
यदि आपके भाव 1 से 100 तक परिणमित होते हैं तो 51 से 100 को विशुद्ध और 1 से 50 तक के भावों को संक्लेश
विग्रहगति में पर्याप्तियाँ
पर्याप्तक नामकर्म वाले जीव भी विग्रहगति में अपर्याप्तक रहते हैं। पं.रतनलाल बैनाड़ा जी
पुण्य
पुण्य सर्वथा हेय नहीं, श्रावकों के लिये पापानुबंधी हेय है पर पुण्यानुबंधी उपादेय है । मुनि श्री सुधासागर जी
भोगभूमि और कल्पवृक्ष
अढ़ाई द्वीप के बाहर की भूमि में कल्पवृक्ष नहीं होते हैं क्योंकि वहाँ मनुष्य नहीं रहते हैं और तिर्यंचों को कल्पवृक्ष चाहिये नहीं । प्रकाश
कर्ता / उपादान / निमित्त
क्रोध आया, इसमें कर्ता आदि को कैसे घटित करें ? क्रोध करती है आत्मा, निमित्त है कर्म, साधन – अपशब्द कहने वाला । कर्ता दो
मुमोक्षु
जो छोड़ने/छूटने का इच्छुक हो । (यदि मोक्ष का इच्छुक मानें तो ८वें गुणस्थान से मुमोक्षु परिभाषा घटित नहीं होगी ) मुनि श्री प्रमाणसागर जी
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