Category: अगला-कदम

हिंसा

आत्मा प्राणों से भिन्न है, प्राणों का वियोग होने पर आत्मा को तो कुछ भी नहीं होता, तो हिंसा/अधर्म कैसे हुआ ? प्राणों का वियोग

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भाव

2 प्रकार 1. परिस्पंदन रूप – मन, वचन, काय से । 2. अपरिस्पंदन रूप – सामान्य भाव से । परिस्पंदन रूप भाव तीव्र मंद होते

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परनिंदा

परनिंदा आदि से ‘नीच गोत्र कर्म’ में विशेष अनुभाग पड़ता है । बाकि 6 कर्मों का ‘प्रदेश बंध’ होता है । तत्वार्थ सुत्र टीका –

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सम्यक्त्व और आश्रव

सम्यक्त्व तो आश्रव का कारण होता नहीं है, फिर देवायु में कारण क्यों कहा है ? सम्यग्द्रष्टि जीव जब आयुबंध करता है तब देवायु का

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साम्परायिक आश्रव

साम्परायिक आश्रव में 5 इंद्रिय, 4 कषाय, 5 अव्रत और 25 क्रियायें ली हैं । जब इंद्रिय ले लीं और उनके द्वारा ही कषाय, अव्रत

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कषाय

आत्मा को कषित अर्थात् घाततीं हैं क्योंकि दुर्गति में ले जातीं हैं । तत्वार्थ सुत्र टीका – पं. कैलाशचंद्र जी

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शुभ – अशुभ योग

शुभ योग ज्ञानावरण आदि पापकर्मों के बंध में भी कारण है । ‘शुभ पुण्यस्य’ अघातिया कर्मों की अपेक्षा कहा गया है यानि शुभ योग से,

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चारित्र मोहनीय

चारित्र मोहनीय के आश्रव के क्या कारण हैं ? कषाय के उदय से होने वाले तीव्र आत्म परिणाम ।

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पुदगल का उपकार

सुख और जीवन तो पुदगल का उपकार है पर दु:ख और मरण उपकार कैसे हुये ? दु:ख और मरण, विरक्ति के कारण होने से, ज्ञानी

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व्रती

व्रती 3 शल्य ( माया – मायाचारी, निदान, मिथ्यादर्शन ) रहित होता है ।

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मंगल आशीष

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