Category: डायरी
मार्दव धर्म
मान निम्न रूपों में आता है… अहंकार तिरस्कार ईर्षा भाव के रूप में क्या मान करना स्वाभाविक नहीं है ? नहीं, अज्ञानता का परिणाम है । अपनी
क्षमा
आज का दिन क्षमा का है । धर्म की शुरूआत क्षमा से ही होती है – सब जीवों को मैं क्षमा करता हूँ, सब
मंगल/सुंदर रूप
तपस्वी का रूप मंगलकारी होता है और यदि सुंदरता भी हो तो सोने में सुहागा जैसे आचार्य श्री विद्यासागर जी का ।
भक्त्ति
क्या 5 छिद्र वाले घड़े में पानी भरा जा सकता है? हाँ, यदि उसे पानी में डुबोये रखा जाये तो। 5 इन्द्रियाँ, जीवन रूपी घड़े
दिगम्बरत्व
जब आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज से एक लंगोटी पहनने के लिये कहा तो उन्होंने दुर्योधन का हवाला देते हुऐ बताया – उसने अपनी माँ
मानना
रावण लंका में सुरक्षित था, राम से ज्यादा बलशाली सेना फिर भी राम क्यों जीते ? क्योंकि रावण किसी की मानता नहीं था, अपने दादा/नाना
परनिंदा
छलनी ने सुई से कहा कि तेरे मुँह में छेद है । सुई – अपनी ओर तो देख ले, तेरे तो पूरे शरीर में छेद
बुद्धि
3 प्रकार की बुद्धि— 1) सात्विक – करनी/अकरनी, पाप/पुण्य का भेद करे। 2) तामसिक – अधर्म को धर्म, अकर्त्तव्य को कर्त्तव्य माने। 3) राजसिक –
दु:ख
दु:ख अज्ञान में, दु:ख का निवारण?… अज्ञान समाप्त करके । मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
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