Category: वचनामृत – अन्य

रितुओं में त्याग

ऋतुओं में त्याग : अगहन – ज़ीरा पौसे – धना माघे – मिश्री फागुन – चना चैते-गुड़ बैसाखे – तेल जेठे – राई असाढ़े –

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सेवा

सेवा करना चाहते हो तो ग्लानि और गाली को जीतना होगा। सेवा करने की क्षमता और गाली सहने की समता बढ़ानी होगी। मुनि श्री सौम्यसागर

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प्रभुकृपा

“प्रभु का दास, कभी उदास नहीं, क्योंकि प्रभु है पास” तब सोच…. जो हो सो हो (हमको क्या) कर्मों का फल सुनिश्चित फिर संयोग वियोग

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जीवन दर्पण

लिख रहा हूँ, यात्रा का विवरण, मैं बिना लेखनी*| मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (*अपने चारित्र के द्वारा प्रभावना करके)

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पाप / व्यसन

पाप में लाभ न दिखे फिर भी पाप करना व्यसन है। मुनि श्री सुधासागर जी

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स्वीकृति

पुलिस अपराधी को तब तक पीटती रहती है जब तक वह अपराध स्वीकार नहीं कर लेता। हमको भी कर्म तब तक पीटते रहेंगे जब तक

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मनुष्य / पशु

पशु के भय, आहार, मैथुन प्रकट होते हैं यानि कहीं भी/ कभी भी। विडम्बना यह है कि मनुष्य भी आज यही कर रहा है। उन्हीं

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तेरा / मेरा

तू मेरा न बन सका, कोई बात नहीं; कम से कम अपना तो बन जा। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (अपना ही तो सब कुछ है,

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आनंद

पूर्ण आनंद साधु को ही जैसे बुखार उतरने पर आता है। गृहस्थ का आनंद तो वैसा है जैसे मरीज का बुखार 105 डिग्री से 101

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निडरता

निडरता, ज्ञान (सांप नहीं है, रस्सी है) तथा श्रद्धा से (देव, गुरु, शास्त्र व कर्म सिद्धांत पर)। भविष्य के लिये – “जो हो, सो हो”

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मंगल आशीष

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