Category: अगला-कदम
अगुरुलघु
अगुरुलघु – 1. सामान्य गुण – जीव तथा अजीव में, ख़ुद के गुण कम न हों, अन्य के गुण आयें नहीं। 2. गोत्र कर्म के
मद
सम्यग्दर्शन में मलिनता युद्ध/हिंसा से नहीं, बल्कि मद से आती है। (आचार्य समंतभद्र स्वामी) मुनि श्री सुधासागर जी
सीमा
महाभारत की कथा हैः शिशुपाल के जन्म पर भविष्यवाणी हुई थी कि कृष्ण के हाथों उसका वध होगा। उसकी माता के आग्रह पर कृष्ण ने
क्षयोपशम सम्यग्दर्शन
औपशमिक सम्यग्दर्शन होने पर मिथ्यात्व की तीनों प्रकृतियां सत्ता में बहुत समय तक रहती हैं। भावों में शुद्धि आने/ लाने से सम्यक्-प्रकृति का उदय करके
मिथ्यात्व
अनित्य को नित्य मानना भी मिथ्यात्व है। क्योंकि तुमने सच्चे देव, शास्त्र, गुरु को तो माना पर उनकी नहीं मानी। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
परिभाषा और दोष
सम्यग्दर्शन आदि की परिभाषा 3 दोषों से रहित होनी चाहिये। दोष…. 1. अव्याप्ति : जो हमेशा/ हर परिस्थिति/क्षेत्र में न रहे जैसे गाय जो दूध
उपाय-विचय
उपाय-विचय (उपाय चिंतन)… इससे तीर्थंकर-प्रकृति का बंध होता है। आत्मबोध से ही सबको दु:खों से छुटकारा मिलता है। सोहम् = सः + अहम् = वह
मारणांतिक समुद्घात
जिन्हें अपने कर्मों पर भरोसा नहीं, उनके मारणांतिक समुद्घात होता है । मुनि श्री सुधासागर जी
नाम कर्म वर्गणायें
शरीर को Maintain करने के लिये भगवान वातावरण से शरीर नाम कर्म वर्गणायें लेते हैं । हम मुख्यत: यह काम कवलाहार से करते हैं ।
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