Category: अगला-कदम
पुण्याश्रव
सराग-संयम, संयमा-संयम और आकाम-निर्जरा मन से होते हैं, बाल तप शरीर से, इनसे ही पुण्याश्रव होता है/देवायु का बंध होता है । मुनि श्री प्रणम्यसागर
सूक्ष्म जीव
एक इन्द्रिय सूक्ष्म जीव जैसे वातावरण में गैस । मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
स्व/अनंत चतुष्टय
विराम का श्री फल चढ़ाने वालों को स्व-चतुष्टय की प्राप्ति होती है, जो अनंत-चतुष्टय की प्राप्ति में निमित्त बनता है। अनंत-संसार के यात्री को अनंत-चतुष्टय
आयुकर्म की आबाधा
आयुकर्म की आबाधा = जितनी भुज्यमान(वर्तमान-भव) आयु शेष रहने पर बध्यमान(पर-भव) की आयु बंधे, अंतरमुहूर्त की बध्यमान की आबाधा 100 साल हो सकती है और
बंध / आबाधा-काल / उदय
कर्म, बंध के समय तथा आबाधा-काल में तो 100% रहता है पर उदय होते-होते 99% उदीरणा/ संक्रमित होकर समाप्त हो जाता है । मुनि श्री
अग्निकायिक जीव
पंचम-काल के अंत में अग्नि समाप्त हो जायेगी, तब बादर अग्निकायिक जीव किसके आश्रित रहेंगे? 2 पत्थरों को रगड़ते हैं तब अग्नि की चिनगारियां निकलतीं
क्षायिक दान
सिद्धों में क्षायिक-दान के भाव अनंत काल तक रहते हैं (Direct लेने वाला नहीं है सो प्रकट नहीं)। उनका मात्र ध्यान करके हम निर्भीक हो
भाव
औदायिक भाव – जो भाग्य में होगा मिलेगा; प्राय: निंदनीय (तीर्थंकर प्रकृति आदि को छोड़कर) । उपशम, क्षायिक, क्षयोपशमिक – पुरुषार्थवाद, कर्मों की नियत धारा
विक्रिया
मनुष्य/ त्रियंच/ एक इन्द्रिय, विक्रिया… औदारिक काय-योग से ही करते हैं, क्योंकि उनके वैक्रियक-काय का उदय तो हो ही नहीं सकता । मुनि श्री सुधासागर
धर्म
वस्तु का स्वभाव “धर्म” है और “स्वभाव” हर वस्तु में होता है यानि “धर्म” हर वस्तु में होता है (इसीलिए धर्म अनादि भी है) ।
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