Category: अगला-कदम
शरीर-नाम कर्म
13वें गुणस्थान के अंत में शरीर के आत्मप्रदेश किंचित कम हो जाते हैं , क्योंकि 14वें गुणस्थान में तो शरीर-नामकर्म का उदय ही नहीं है
विसंयोजना
अनंतानुबंधी को सत्ता से समाप्त करना विसंयोजना है । उपशम तथा क्षयोपशम सम्यग्दृष्टि के भी अनंतानुबंधी उदय में तो नहीं, पर सत्ता* में रहती है
द्रव्य निमित्तिक सम्बंध
द्रव्य यदि पूर्ण रूप से स्वतंत्र हो जाय तब ना तो संसार चलेगा, ना ही परमार्थ । मुनि श्री सुधासागर जी
संज्ञायें
सुबह, आहार संज्ञा प्रमुख रहती है, दिन में परिग्रह, शाम को भय, रात्री में मैथुन । मुनि श्री अविचलसागर जी
सिद्धों में वीर्यत्व
सिद्धों में अनन्त वीर्यत्व, दूसरे पदार्थों के द्वारा प्रतिघात ना हो पाने की अपेक्षा घटित होता है । आर्यिका श्री विज्ञानमति माताजी
परिणमन
कर्म परमाणुओं का भी परिणमन होता है – स्कंध रूप फिर कर्म-वर्गणायें । जूस* युक्त जूस रहित । * कर्म-फल देने की शक्ति मुनि श्री
द्रव्य / तत्व / पदार्थ
द्रव्य में तत्व को मिला दो, पदार्थ कहलायेगा । मुनि श्री सुधासागर जी
आध्यात्म ग्रंथ
द्रव्यानुयोग के 3 भाग – 1. न्याय 2. आध्यात्म 3. जीव के वर्णन वाले ग्रंथ आध्यात्म, द्रव्यानुयोग में आयेगा; परन्तु सारे द्रव्यानुयोग के ग्रंथ आध्यात्म
रत्नत्रय / शुद्धोपयोग
रत्नत्रय तथा शुद्धोपयोग आत्मा के स्वभाव नहीं, विभाव हैं क्योंकि ये भी छूट जाते हैं । मुनि श्री सुधासागर जी
नय
व्यवहार नय – पिता पुत्र की अपेक्षा, “पर” सापेक्ष, भेद रूप, दर्जी द्वारा कपड़े के टुकड़े करना, निश्चय तक पहुँचाता है । निश्चय नय –
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