Category: अगला-कदम

गुणस्थान

1 से 4 इंद्रिय का उदय दूसरे गुणस्थान तक यानि 2 गुणस्थान में मरकर जीव 1 से 4 इंद्रियों में जन्म ले सकता है ।

Read More »

कर्म बंध

जो कर्म-सिद्धांत पर विश्वास नहीं करते उनके कर्मबंध, सम्यग्दृष्टि से बहुत ज्यादा होता है (सम्यग्दृष्टि के तो अंत: कोड़ा कोड़ी के बंधते हैं) । मुनि

Read More »

दर्शनावरण

पहले चार सब जीवों के हर समय उदय में रहते हैं । बाकी पाँच निद्राओं में से कोई एक उदय में रहती है और ये

Read More »

कर्मों में परिवर्तन

कर्मों में उत्कर्षणादि हर समय अबुद्धिपूर्वक होता रहता है । पर मोक्ष के हेतु निर्जरादि/तप बुद्धिपूर्वक होता है । मुनि श्री सुधासागर जी

Read More »

प्रदेशी

बहुप्रदेशी भी अभेद दृष्टि से एक प्रदेशी कहा जा सकता है, क्योंकि प्रदेश खंड़ित नहीं होते जैसे सूत की माला में गाँठें । जैसे चारों

Read More »

सप्रतिष्ठित / अप्रतिष्ठित

प्रत्येक जीव जब सप्रतिष्ठित होता है तो अनंत जीव उसके आश्रित रहते हैं । अप्रतिष्ठित होने पर असंख्यात/संख्यात उस शरीर में रहते तो हैं पर

Read More »

सासादन / मिश्र

सासादन-सम्यग्दृष्टि इसलिये कहा क्योंकि इसमें जीव सम्यग्दर्शन से ही आता है जबकि मिश्र में मिथ्यात्व से भी । चिंतन

Read More »

देव

मिथ्यादृष्टि, ग्रैवेयक जा सकता है पर सौधर्म/लोकपाल/प्रतींद्र नहीं बन सकता है । ऊपर वाले देव इनके देवर्द्धिदर्शन से सम्यग्दर्शन प्राप्त कर लेते हैं ।

Read More »

मंगल आशीष

Archives

Archives

June 2, 2018

November 2024
M T W T F S S
 123
45678910
11121314151617
18192021222324
252627282930