Category: अगला-कदम
पारिणामिक भाव
भवत्वादि पारिणामिक भाव हैं, आत्मा के स्वभाव नहीं । क्योंकि 13वें गुणस्थान में भवत्व छूट जाता है । कुछ आचार्यों ने तो 14वें गुणस्थान में
तीर्थंकर प्रकृति उदय
सूर्योदय कमल के खिलने में कारण नहीं, बल्कि सूर्योदय से पहले की आभा कारण होती है । पहले तीन कल्याणक आदि तीर्थंकर प्रकृति के उदय
सम्यग्दर्शन/ज्ञान
सम्यग्दर्शन कारण रूप है, तथा सम्यग्ञान कार्य रूप । पुरूषार्थसिद्धिउपाय – गाथा – 33
आतप का बंध
पहले गुणस्थान में 16 कर्म प्रकृतियों की बंध व्युच्छत्ति होती है जिसमें सिर्फ आतप पुण्य प्रकृति है । कारण ? आतप सिर्फ 1 इंद्रिय को
क्षपक श्रेणी
इसे माढ़ते समय अनुभाग – पुण्य प्रकृतियों का उत्कृष्ट तथा पाप प्रकृतियों का कम; स्थिति – पाप प्रकृतियों की कम तथा पुण्य प्रकृतियों की भी
केवलज्ञान में ज्ञान/दर्शन
केवलज्ञानी के केवल ज्ञान व दर्शन युगपद कैसे ? भगवान के अनंतवीर्य का उदय रहता है, इसीलिये उनको दर्शन और ज्ञान के बीच अंतराल की
रत्नत्रय
सम्यग्दर्शन – पाप को पाप जानना । सम्यग्ज्ञान – पाप को पाप मानना । सम्यकचारित्र – पाप को पाप मानकर छोड़ना ।
म्लेच्छ
म्लेच्छ-खंड़ से आयीं पत्नियों की संतान 6-7 गुणस्थान तक ही जाती हैं, क्योंकि ये क्षेत्र-म्लेच्छ होते हैं।
दस प्राण
10 प्राणों में सिर्फ 3 में (मन, वचन, काय) “बल” क्यों लगाया ? ये तीन सबसे बलवान हैं इनसे ही कर्म बंधते हैं बाकी तो
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