Category: अगला-कदम

शुक्ल ध्यान

1. पृथक्त्वविर्तक वीचार I. वीचार = परिवर्तन सहित II. पृथक-पृथक अर्थ/ पर्याय/ योग (मन या वचन या काय) पर शुक्ल ध्यान 2. एकत्व वितर्क अविचार

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षट भाग हानि लाभ

संख्यात भाग, असंख्यात, अनंत भाग हानि के बाद लाभ में अनंत भाग लाभ, असंख्यात, संख्यात भाग लाभ आयेगा। समझने के लिये एक कपड़े के संख्यात

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सचित्त-त्याग प्रतिमा

श्री रत्नकरण्ड श्रावकाचार में… सचित्त-त्याग प्रतिमा वाले को “दया की मूर्ति” कहा है। यानी सचित्त फल-सब्जियों को जीव सहित माना/ खाने पर हिंसा मानी। महापुराण

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समय

एक समय → निश्चय काल की अपेक्ष….. द्रव्य। व्यवहार काल की अपेक्षा… पर्याय। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (जिज्ञासा समाधान)

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जीव / अजीव

1. जीव तथा अजीव (अणु) दोनों ही एक समय में 14 राजू गति कर सकते हैं। 2. दोनों पूरे लोकाकाश को घेर सकते हैं। (पुद्गल

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देशघाती / सर्वघाती

देशघाती में सर्वघाती द्रव्य भी रहता है, सर्वघाती में देशघाती नहीं जैसे अनंतानुबंधी। क्षयोपशम में देशघाती तथा सर्वघाती दोनों रहते हैं जैसे ज्ञानावरणादि में। कमलाबाई

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भाव / उपयोग

पारिणामिक भाव चैतन्य भाव के हमेशा साथ (भव्यत्व या अभव्यत्व/ जीवत्व)। उपयोग अनेक तरह से परिवर्तित, भावात्मक परिणति भाव से उपयोग में परिवर्तन। उपयोग में

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औदारिक

“औदारिक” उदार शब्द से बना है जैसे उपशम से औपशमिक। उदार यानी बड़ा/ स्थूल/ महान। उदार क्यों कहा ? 1. चारों पुरुषार्थों में सबसे कठिन/

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शरीरों की सूक्ष्मता

औदारिक से कार्मण तक सूक्ष्मता अधिक-अधिक होती जाती है। सूक्ष्मता दो दृष्टि से – 1.स्थूलता में कमी 2.दृष्टिगोचर न होना वैक्रियक शरीर देव दिखाना चाहें

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लब्धि

1. पाँच लब्धियाँ.. सम्यग्दर्शन होने से पहले (5 Achievements) 2. क्षायिक लब्धि.. कर्म क्षय होने पर आत्मा को गुण प्राप्ति। 3. क्षयोपशम लब्धि.. कर्म के

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मंगल आशीष

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