Category: अगला-कदम
म्लेच्छ खंड़
सम्यग्दर्शन यहाँ नहीं होता (सबका गुणस्थान 1), इसको छोड़कर आर्यखंड़ में आने पर हो सकता है । यहाँ लब्धिपर्याप्तक नहीं होते क्योंकि वातावरण साफ सुथरा
स्वाध्याय
स्वाध्याय के काल में ज्ञानावरणादि का तीव्र अनुभाग, संक्रमण/अपकर्षण करके मंद हो जाता है, तथा प्रतिसमय असंख्यात गुणी निर्जरा होती है तथा पुण्य का तीव्र
भाव
जीव में पाँचों भाव पाये जाते हैं । पुदगल में कर्म के उदय के कारण औदायिक तथा पारिणामिक । शेष चार द्रव्यों में सिर्फ पारिणामिक
पुदगल भी अमूर्तिक
जीव के साथ बंधी पुदगल कर्म वर्गणाऐं भी उपचार से अमूर्तिक भाव को प्राप्त कर लेती हैं । जीव तथा पुदगल में मूर्तिक और अमूर्तिक
निर्जरा
सविपाक तथा अकाम निर्जरा सब जीवों के (सम्यग्दृष्टि व मिथ्या दृष्टि के भी), अविपाक वृतियों के, पर सम्यग्दर्शन के सम्मुख खड़े पहले गुणस्थान वाले के
कर्म प्रक्रिया
कार्मण शरीर में असाता का उदय, तो तैजस को बुखार, औदारिक बीमार । इलाज- कार्मण का इलाज किये बिना रोग ठीक होने वाला नहीं जैसा
शरीरों के प्रदेश
औदारिक वैक्रियक से बड़ा, पर प्रदेश कम, सो कैसे ? औदारिक वर्गणायें बड़ी, वैक्रियक की छोटी । ऐसे ही आहारक की असंख्यात गुणी छोटी, जबकि
समुदघात
सातों समुदघात में आत्मप्रदेश मूल शरीर से Linked रहते हैं । पं. रतनलाल बैनाडा जी
कर्मोदय
सब कर्मों की वर्गणाऐं उदयकाल आने पर झरती रहतीं हैं । पर जिनको बाहरी निमित्त मिल जाता है उनका उदय कहलाता है, इसे रसोदय कहते
उदय/बंध
जिस कर्म प्रकृति का उदय होता है, प्राय: उसी का बंध भी होता है । जैसे अंतराय के उदय से कार्य सिद्धि नहीं हुई तो
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